कविता: क्या कहें कि कैसी अदाएं हैं उनकी
क्या कहें कि कैसी अदाएं हैं उनकी,
हम तो बस कश्मकश में ही पड़ते हैं ।
रुख से वो पर्दा हटाते नहीं हैं और,
हमारा दीदार न हो तो बैचैन हो उठते हैं ।
हमारा हाल – ए – दिल तो वो सुनते नहीं ,
गर हम तवज्जो न दें तो खफा हो सकते हैं ।
इश्क की गली में संग हमारे कदम रखते नहीं ,
हम किसी और जानिब जाएं तो आंखें नम करते हैं ।
इकरार के लफ्ज़ वो हमसे कहते नहीं हैं और ,
हमें इंकार का ख्याल भी आए तो आहें भरते हैं ।
अदिति टंडन
आगरा .
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