कविता: माँ की उपस्थिति

कविता: माँ की उपस्थिति

आओ तुम्हें जन्नत दिखाता हूं
घर चलो मां से मिलवाता हूं
मैने भी मां की तस्वीर को शिद्दत से देखा
कुछ नमकीन सा दरक गया मेरे कंठ के नीचे
मां से आंखे चार हुयी
मैने सजल नयन पूछा कहां हो
मां ने कहां तुम्हारे पास हूं
महसूस करके देखो
अरे अपने अंश से कोई दूर जाता है
हमारा तो रक्त का नाता है
सुबह सुबह रखते हो दाना पानी
चिड़ियों की चहचहाहट मे आती हूं मै
क्यारी मे डालते हो पानी
फूलो की खुशबू मे मुस्कुराती हूँ मै
गाय को दी जाने वाली रोटी की सौंधी सौंधी खुशबू मे महसूस करो मुझे
किसी वृद्धा जरूरतमंद को भोजन कराओ
देखो मुस्कुराओंगी मै
बहिनों बेटियों का सत्कार करो
देखो उनकी मुस्कान मे आउंगी मै
मां के नेत्रो की चमक से
मुझे संदेश मिल गया
मन का कोना कोना खिल गया
माँ कहीं नही जाती
जाता है केवल शरीर
माँ तो बसती है उसके दिये संस्कारो मे
हमारे सत्कर्मों मे
आइये मां की याद को अक्षुण्ण करें
और आज कुछ बहुत अच्छा करें।

 

महेश शर्मा (Mahesh Sharma), भोपाल (9407281746)

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