कविता: मयकदा खफा है हमारी

Post by: Poonam Soni

मयकदा खफा है हमारी
बढ़ती गैर हाजिरी से
अब कैसे जाएं हम जब
डूबे हैं तेरी बेखुदी में।

स्याही रूठी है कि क्यूं
नहीं सजाते अब लफ्ज़
पर कैसे लिखें वो अल्फाज़
जो सिमट गए तेरे तसव्वुर में।

फिजाएं भी नाराज़ हैं कि नहीं
करते अब हम रुख गुलशन का
कैसे जाएं अब उस जानिब
जब कस्तूरी बसी तेरे दामन में।

aditi

अदिति टंडन
आगरा .

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