– स्नेह सुरभि:
मुझे गुमान था…
अकेला नहीं हूं मैं
शहराें के बड़े महलाें में
भले बचे ना हाें रिश्ताें के घराेंदे
पर गांव में कबेलू के छप्पर नीचे आज भी समेट सकता हूं शहर का महल।
साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाए
ना मैं भूखा रहूं ना साधू भूखा जाए
बस इसी प्रार्थना के साथ ताे मैं बांट लेता था अपने सुख
और जला देता था चूल्हे की धधकती ऊल में वाे दुख
जाे बांटे नहीं जा सकते।
ऐसा नहीं कि यह किसी से छुपा हाेता
सब जानते थे इसलिए मुझसे जुड़े रहते थे
काेई मान देने ताे काेई यह जानकर जुड़ा रहता
कि मैं खजूर नहीं जिसकी फल और छाया दूर है
मैं आम हूं जाे छांव भी दूंगा और मिठास भी।
पर यह क्या
मैने अपनाें के साथ मिलकर जिसे बनाया मुखिया
वह देश- विदेश घूमा,
मैं खेतीहर
मैं तपती धूप में मकान बनाता मजदूर
राेज की प्यास बुझाने कुंआ खाेद तिनका तिनका बूंद बूंद जुटाता
साेच रहा था शायद कुछ नए सपने बुन रहा हाेगा
मैं अपने हिस्से की मेहनत कर रहा हूं
मुखिया अपने हिस्से की कर रहा हाेगा
वह ताे खरीद लाया है शायद
मेरे गुमान काे खंड- खंड करने का सामान
अब मेरी आने वाली पीढ़ि सामाजिक सदभाव से नहीं सामाजिक दूरी के साथ आइसाेलेट रहेगी,
खजूर का पेड़ ही बनेगी
नहीं जानेगी कैसे सुख बांटकर दूसराें के दुख अपनाए जाते हैं
ना सीख सकेगी कैसे एक टिफिन से कइयाें के पेट भर जाते हैं….
क्याेंकि उसके मुंह पर मास्क मस्तिष्क पर बंध गया है बंधन।
हमने माॅडर्न हाेकर केवल मामा, मासी, ताऊ, चाचा ही खाेए हैं
फिर भी अपने दुख भाई- बहनाें के कंधे पर ही राेए हैं
मेरी आने वाली पीढ़ि का ना भाई हाेगा ना भाईचारा
ना ही बन सकेगा अब उसका कभी काेई दाेस्त प्यारा
अरे मुखिया मुझे नहीं थी तुझसे यह उम्मीद
पर समझ गया हूं एक गलत चुनाव
कैसे चुन- चुन छीन लेता है
खुशियां
मान
सम्मान
और सदभाव जाे कभी हमारी पहचान रहे हैं
बस चीत्कार सी निकलती है
बचा लाे
यह चला गया ताे चली जाएगी मेरी भारतीय आत्मा
चला जाएगा मेरा गुमान
स्नेह सुरभि (Surabhi Namdev)
मोबाइल नंबर- 98938 23981