कविता: फितरत प्रेम की…

कविता: फितरत प्रेम की…

राह में हम तेरे इंतजार में

तुझे देखना गवारा ना था ,
तो हमारी भी पलटकर
देखने की फितरत न रही।
चाहत थी, तब भी और अब भी 
पर तेरी नजरों ने फेरी नजर,
मेरी भी चाहत दिखाने की 
अब फितरत ना रही।
तेरी याद जो टीस बन रही
पर यूँ तेरा खामोशी से जाना,
अब मेरी भी रोने की
पुरानी  फितरत ना रही 
वादा कर निभाना सबके वश में कहाँ 
साथ तेरे ,यह दर्द का रिश्ता,
पर अब तू आया भी अगर
दर्द दिखाने की फितरत ना रही।
               मीनाक्षी “निर्मल स्नेह”
             मुंबई
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