तुम्हारे आंचल की गिरहा में
इक धूप का टुकड़ा बांधा है हमने
गर तुम राह – ए – मंज़िल बनो
तो सुनहरी हो जाएं राहें।
कुछ ख़्वाब भी बांधे हैं
तुम्हारे लहराते आंचल से
गर तुम सुकून – ए – दिल बनो
तो इश्क से गूंजें फिजाएं।
और समेट दिए हैं कुछ
इश्किया लम्हे तुम्हारे आंचल में
गर तुम शरीक – ए – हाल बनो
तो शुकराना करें निग़ाहें।
अदिति टंडन(Aditi Tandan)
आगरा