झरोखा : लक्ष्मी नमाज करते, सलीम कर रहे नर्मदा परिक्रमा

झरोखा : लक्ष्मी नमाज करते, सलीम कर रहे नर्मदा परिक्रमा

– पंकज पटेरिया : 
आज जब कुछ सिर फिरे लोग इंसानियत और अमन चैन के दुश्मन सूबे की प्यार-मोहब्बत, भाईचारे की खुशनुमा फिजा को बिगाडऩे को आमादा हैं। राजधानी भोपाल के एक हिंदू भाई लक्ष्मी नारायण खंडेलवाल रमजान के पाक महीने में रोजे रख रहे हैं। बाकायदा नमाज भी करते हैं। लक्ष्मी जी अपने धर्म का आदर करते हुए भक्ति भाव से पूजा पाठ भी करते और नवरात्रि की भी उपासना भी व्रत रखते हुए करते हैं। 70 वर्षीय खुश मिजाज लक्ष्मी भाई पतंग व्यवसाई हैं और एक शानदार पतंगबाज भी हैं।
जानकारी के मुताबिक करीब 50 वर्षों से यह क्रम वे साधे हुए हैं स्वप्न में मिले ख्वाजा साहब के एक आमंत्रण पर अजमेर शरीफ भी हो आए। दो अन्य मित्रों के साथ अजमेर की यात्रा उन्होंने पैदल ही तय की थी। वैष्णव माता देवी का सफर भी वह कर चुके हैं। वहीं सर्वधर्म समभाव की अनूठी मिसाल कायम करने वाले एक नेक महाराष्ट्र मालेगांव निवासी मुस्लिम भाई जनाब सलीम रोजे के साथ पुण्य सलिला मां नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं। सलीम भाई ने 5 माह पहले ओंकारेश्वर नर्मदा परिक्रमा की शुरू की।

जानकारी के मुताबिक वे दूसरी बार नर्मदा जी की पैदल परिक्रमा कर रहे हैं। पक्के नवाजी सलीम भाई रोजा तो रखे हैं, सुबह तड़के और शाम को बगैर नागा पूजा पाठ कीर्तन भी करते हैं। सलीम भाई की बचपन में आंखों की रोशनी चली गई थी। वे कहते हैं मां नर्मदा की कृपा से उनकी आंखों की रोशनी लौट आई। उन्होंने बताया आंखों की रोशनी जाने के बाद गांव के लोग उन्हें महामंडलेश्वर पूज्य शांतिगिरी महाराज के पास लेकर गए थे, महाराज श्री के अमृत वचन से मैं इतना अभिभूत हुआ कि मैं ईश्वर की भक्ति में लीन हो गया। ईश्वरीय कृपा से मेरी आंखों की ज्योति भी लौट आई। उन्होंने कहा महाराज श्री से मैंने नाम बदलने की गुजारिश भी की थी, तब महाराज जी ने कहा था तुम्हें नाम बदलने की कोई जरूरत नहीं। लिहाजा तभी से दोनों धर्मों का समादर करते हुए जिंदगी का खुशनुमा सफर चल रहा है। पुण्य सलिला नर्मदा जी की गोद में बसे नर्मदापुरम में भी एक सांप्रदायिक सद्भाव की अद्भुत मिसाल श्री राम जी बाबा की समाधि है। जहां सुबह रहीम परस्तिश के लिए हाजिरी लगाते हैं तो शाम को राम माथा टेकने आते हैं। यह समाधि हिंदू संत रामदास बाबा और मुस्लिम संत गौरी शाह बादशाह साहब की दोस्ती की शानदार मिसाल है। फिर क्यों भूल जाते हैं, हम डॉक्टर इकबाल का यह मशहूर तराना मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर करना, हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा। नर्मदे हर।

पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
9893903003
9340244352
(नोट: झरोखा की इस सीरीज की किसी कड़ी का बगैर संपादक अथवा लेखक की इजाजत के बिना कोई भी उपयोग करना कानूनन दंडनीय है। सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।)

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AUTHORRohit

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