लेख: ज़िंदगी खुदा का दिया सबसे अनमोल तोहफ़ा है
ज़िंदगी खुदा का दिया सबसे अनमोल तोहफ़ा है। यूं तो जीवन का हर पड़ाव बहुत खूबसूरत होता है। चाहे बचपन हो, जवानी या फिर वृद्धावस्था। व्यक्तिगत तौर पर हमें ये जरूर लगता है कि 40 की उम्र सबसे अच्छी है।
जब उम्र पढ़ाई की और करियर बनाने की होती है तब हम उसी में पूरी तरह से व्यस्त रहते हैं। ज़िंदगी को ज्यादा गौर से नहीं देखते। फिर लक्ष्य हासिल करने के बाद विवाह और परिवार जो कि एक नई जिम्मेदारी होती है।
कुछ वर्ष इन नई जिम्मेदारियों को समझने और निभाने में बीत जाते हैं और इनमें ही हम इस कदर उलझ जाते हैं कि सही दृष्टिकोण से जीवन को देख ही नहीं पाते।
40 की उम्र आने तक जिन्दगी को एक दिशा मिल जाती है और विचारों में स्थिरता आ जाती है। इस उम्र तक बच्चे भी बड़े हो जाते हैं जो अपनी जिम्मेदारी खुद उठा सकते हैं।
यही वक्त होता है जब हम शांत हृदय से सोच सकते हैं कि हमने क्या पाया, किस मुकाम पर हैं और आगे क्या करना है।
कुछ शौक होते हैं जिन्हें हम परिवार की ज़िम्मेदारियों में भूल जाते हैं। उनको भी हम समय निकाल कर पूरा कर सकते हैं।
मुझे लिखने का शौक 42 साल की उम्र में शुरू हुआ। जब से लिखना शुरू किया तब से ज़िंदगी में सकारात्मक परिवर्तन आया है। कभी सोचा न था कि लिख सकती हूं। वैसे इसका श्रेय मेरे सुख दुख की साथी मेरी सखी मीनाक्षी श्रीवास्तव को जाता है। हमारे हिसाब से ये स्वर्णिम समय है ज़िंदगी का। जब हम जीवन को नए नजरिए से देखना आरम्भ करते हैं। ख़ुद का एक नया आयाम तलाश सकते हैं। ये उम्र है ख़ास और जुदा है इसका अंदाज़। अगर महसूस करें तो बसंत से सुंदर हैं जिंदगी के ये साल।
सुरमई सी उम्र है
कुछ अलग की है चाहत
वजूद की नई दिशा है
परवाज़ की है चाहत।
दिल की तिजोरी से
बिसरे ख़्वाब चुरा लें
ख़ुद से मिलकर
रूह संवारने की है चाहत।
अदिति टंडन (Aditi Tandan)