इटारसी। लोक सृजन संस्था ने कवि विकास उपाध्याय के निवास पर काव्य गोष्ठी में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए पुण्य स्मरण किया। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुशवाहा ने ‘हिमकिरीटनी’ काव्य संग्रह से उद्घृत पंक्तियां ‘क्या कहा कि यह घर मेरा है’ सुनाई। ‘उमड़ते मेघ पीड़ा के’ काव्य संग्रह की चर्चा करते हुए इटारसी नगर के अनेक साहित्यकारों, डॉ. चंद्रकांत शास्त्री ‘राजहंस’, डॉ. उमाशंकर शुक्ल, विपिन जोशी आदि का भी स्मरण किया।
काव्य गोष्ठी का संचालन करते हुए सुनील जनोरिया ने बंद पड़े गांधी वाचनालय को पुन: प्रारंभ करने की चर्चा की। मां सरस्वती वंदना आविनेश चंद्रवंशी ने प्रस्तुत की। कवि विनोद दुबे बिंदु ने ‘मां बस यह वरदान चाहिए अपनेपन का मान चाहिए’। कवि चिरकुट ने ‘अपना शहर, अपनी गली, इधर मनचली तो उधर भी मनचली’।शायर मदन बड़कुर ‘तनहाई’ ने ‘मुझे तो इस शहर की मिट्टी माथे से लगाना है। मिले रहमत मुझे उनकी गजल को कुंदन बनाना है, सुनाई। कवि तरुण तिवारी ने हम भाई भाई हैं, कोई समस्या नहीं हैं, कवि राजेश व्यास ने धू-धू कर जलती नरवाई प्रस्तुत की। प्रख्यात गीतकार रामकिशोर नाविक ने रात सपने में कह रही थी नदी, क्या बताएगी बच्चों को अगली सदी। कवि विकास उपाध्याय ने मत लगाना नरवाई में आग, खड़ी फसल जल गई थी। सुनाकर पर्यावरण सुरक्षा पर चिंता व्यक्त की।
कवि विनय चौरे ने भक्ति गीत सुनहरे पल बिताने को एक बार आ जाओ, प्रकट भए दशरथ के लल्ला एक बार अयोध्या आ जाओ। सुनील जनोरिया ने हम परिसंघ बनाएंगे जैसी उच्च स्तरीय रचना प्रस्तुत कर गोष्ठी को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। इस अवसर पर पत्रकार राजेश दुबे एवं समाजसेवी राजेश चौहान ने पंडित माखनलाल चतुर्वेदी को श्रद्धांजलि अर्पित की। आभार प्रदर्शन करते हुए लोक सृजन संस्था के संयोजक विकास उपाध्याय ने नगर में साहित्यिक आयोजन की निरन्तरता पर बल दिया। अंत में श्री नाविक ने पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं कविता को मोबाइल पर सुनाकर सभी को भाव विभोर कर गोष्ठी का समापन किया।