मातृ शक्ति ही देश की संस्कृति है- आचार्य रामकृपाल

इटारसी। मातृशक्ति की सेवा के बगैर कोई भी कार्य पूर्ण नहीं होता है, मातृ शक्ति ही भारत की धर्म संस्कृति की पहचान है। उक्त उद्गार भोपाल के आचार्य रामकृपाल शास्त्री ने सोनतलाई में श्रीमद् देवीभागवत महापुराण समारोह में व्यक्त किये।
मां कात्यानी देवी मंदिर समिति द्वारा ग्राम सोनतलाई में आयोजित देवी भागवत कथा सप्ताह के द्वितीय दिवस में उपस्थित श्रोताओं के समक्ष आचार्य रामकृपाल ने माता सीता के सेवा प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि फाल्गु नदी के तट पर प्रभु सीताराम अपने पिता दशरथ जी का पिण्डदान करने गए। वहां रामजी ने सीताजी से कहा मैं पिण्डदान की सामग्री लाता हूं और वह नदी से दूर निकल गए, तभी स्व. दशरथ जी की आत्मा फाल्गु नदी के तट पर आई और सीताजी से कहने लगी मेरा पिण्डदान तत्काल होना चाहिए तभी मान्य होगा। यह सुन सीताजी ने नदी की रेत से ही पिण्ड बनाकर वहां रखी कुशा रूपी घास पर रखकर फाल्गु नदी के जल में अर्पण कर स्व. दशरथ जी का पुण्य श्राद्ध किया। अत: यह प्रसंग संदेश देता है कि नारी रूपी मातृशक्ति प्रत्येक धर्म कार्य को कर सकती है। उनके द्वारा संपन्न किये गए कार्यों को परमात्मा भी मान्यता प्रदान करते हैं। इस प्रकार श्री शास्त्री ने देवी पुराण के माध्यम से शक्ति की भक्ति के अनेक आध्यात्मिक प्रसंगों को सांसारिक रूप में श्रोताओं के समक्ष प्रतिपादित किये और संगीतमय भजनों के साथ देवी की आराधना का भक्तिमय रसपान कराया। कथा के प्रारंभ में आयोजन समिति एवं समस्त ग्रामवासियों की ओर से कार्यक्रम संयोजक राजीव दीवान ने आचार्यश्री का स्वागत किया।