माघ पूर्णिमा व्रत 2023 (Magha Purnima Vrat)
माघ पूर्णिमा व्रत 2023 : माघ पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा के नाम से भी जाता है। हिंन्दू घर्म में इस पूर्णिमा का एक विशेष महत्व होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। इसलिए इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदीं मे नहानें से मनुष्य को अपने पापों से मुक्ति मिल जाती है।
साथ ही इस दिन दान और जप करना बहुत ही फलदायी बताया गया है। माघ पूर्णिमा पर स्नान करने वाले मनुष्यों पर भगवान विष्णु की कृपा बरसती है तथा उन्हें सुख-समृद्धि, संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माघ पूर्णिमा व्रत 2023 तिथि और मुहूर्त (Magha Purnima Vrat Date and Muhurta)
- इस वर्ष यह व्रत 5 फरवरी 2023, दिन रविवार को किया जाएगा।
- माघ पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 4 फरवरी 2023 समय रात 09:29 से।
- माघ पूर्णिमा तिथि समाप्त – 5 फरवरी, रात 11 बजकर 58 मिनट तक।
- स्नान का शुभ समय- 5 फरवरी, सुबह 05:22 मिनट से सुबह 06:14 मिनट तक।
माघ पूर्णिमा व्रत 2023 महत्व (Magha Purnima Vrat Significance)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माघ पूर्णिमा का हिन्दु धर्म में अत्यधिक महत्व बताया गया है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु गंगा नदी में निवास करते हैं और इसलिए माना जाता है कि गंगा नदी के पवित्र जल को छूने मात्र से भक्त मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। माघ पूर्णिमा व्रत का पालन करने से भक्त अपने पापों से मुक्ति पा सकते हैं और मन की पवित्रता और शांति भी प्राप्त कर सकते हैं।
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माघ पूर्णिमा व्रत 2023 पूजा विधि (Magh Purnima Vrat Puja Method)
- माघ पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त में गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यदि गंगा स्नान संभव न हो तो पानी में गंगाजल मिलकर घर ही स्नान करें।
- स्नान के बाद 108 बार ॐ नमो नारायणाय मंत्र का जाप करें।
- इसके बाद सूर्य की ओर मुख करके खड़े हो जाएं और जल में तिल डालकर सूर्य को जल समर्पित करें।
- इसके बाद चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि चीजें अर्पित करें भगवान श्री विष्णु की पूजा करें।
- अंत में आरती कर अपनी मनोकामनां की प्रार्थना करें।
- इसके बाद गरीबों को दान दक्षिणा दें।
माघ पूर्णिमा व्रत 2023 कथा (Magh Purnima Vrat Story)
पौराणिक कथा के अनुसार, कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपना जीवन-यापन दान-दक्षिणा मांग कर करता था। दोनों पति-पत्नी अपने इस जीवन से खुश थे। बस दुःख यह था कि ब्राह्मण और उसकी पत्नी की कोई संतान नहीं थी।
एक दिन उसकी धनेश्वर की पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, लेकिन सभी ने उसकी कोई संतान न होने से उसे भिक्षा देने से इंनकार कर दिया, जिससें वह बहुत दुखी हुई। उसे दुखी देखकर एक साधु ने उसे 16 दिन तक माँ काली की पूजा करने को कहा। ब्राह्मणी ने ऐसा ही किया और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर 16 दिन बाद माँ काली प्रकट हुई। और ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया।
और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाना। इस तरह हर पूर्णिमा के दिन तक दीपक बढ़ाती जाना जब तक कम से कम 32 दीपक न हो जाएं। ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर लाकर दिया। उसकी पत्नी ने पूजा की जिसके फलस्वरूप वह गर्भवती हो गई।
प्रत्येक पूर्णिमा को वह मां काली के कहे अनुसार दीपक जलाती रही। मां काली की कृपा से उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम देवदास रखा गया। देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के घर पढ़ने के लिए काशी भेजा गया। काशी में मां-भांजे के साथ एक दुर्घटना घटी जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया।
देवदास ने इस विवाह को रोकने के लिए कहा भी कि वह अल्पायु है परंतु फिर भी जबरदस्ती उसका विवाह करवाया गया। कुछ समय बाद यमराज काल के रूप में उसके प्राण लेने आया लेकिन उस दिन ब्राह्मणी ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इसलिए काल देवदास का कुछ नहीं बिगाड़ पाया। तभी से यह कहा जाता है कि माघी पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।