इटारसी। ठाकुर श्री द्वारिकाधीश बड़ा मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिन आचार्य सुमितानंद ने कथा को विस्तार देते हुए महाभारत के प्रारंभ से लेकर युद्ध समाप्ति तक के प्रसंग मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किए।
आचार्य ने कहा कि महाभारत का सबसे बड़ा कारण धृतराष्ट्र का पुत्र मोह था परंतु विजय धर्म की ही हुई। उन्होंने कहा कि जिस धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह किया, सारे पुत्रों की मौत के बाद उसे भी पत्नी गांधारी सहित वन में ही जाना पड़ा। पितामह भीष्म के भी प्राण नहीं बचे, युद्ध के बाद श्री कृष्ण द्वारिका चले गए एवं वहां उन्होंने राज किया। कृष्ण जहां पर है, वहीं धर्म है। आचार्य सुमितानन्द ने कहा कि परीक्षित के प्राण भगवान कृष्ण ने गर्भ में ही बचाए। परीक्षित की एक गलती के कारण उनकी मौत निश्चित हुई। आचार्य ने कहा कि शमिक ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डालने के बाद ऋषि पुत्र सारंगी के श्राप से परीक्षित की मौत हुई। सात दिन का जो समय परीक्षित को मिला उसमें उन्होंने सुखदेव जी से श्रीमद् भागवत कथा का ज्ञान प्राप्त किया।
आचार्य सुमितानंद ने कहा कि भूल से हुई गलती भी व्यक्ति के महामानव रूप को नष्ट कर देती है। जबकि राजा परीक्षित एक योग्य राजा थे। आचार्य ने राजा परीक्षित के युग में कलयुग के प्रवेश पर भी विस्तार से कथा सुनाई और कहा कि आज भी कलयुग राजा परीक्षित के बताएं पांच स्थानों पर ही है । आचार्य ने कहा कि राज पुत्र ध्रुव को उसकी सौतेली मां ने राजा की गोद में बैठने के लिए इनकार किया। परंतु ध्रुव ने मन वचन कर्म से अपने ईश्वर की सेवा और तपस्या करके यह सिद्ध कर दिया कि वह जगत व्यापी है।
आचार्य ने सृष्टि निर्माण का वर्णन किया। कर्दम और देवहूति की संतान भगवान कपिल के जन्म की कथा सुनाई और बताया कि सृष्टि में मनुष्य कैसे आया। कथा के यजमान श्रीमती निर्मला गौरीशंकर सोनिया एवं राजेश अनिता सोनिया ने कथा के प्रारंभ में व्यास पीठ पर विराजित आचार्य श्री एवं श्रीमद्भागवत का पूजन किया। कार्यक्रम संयोजक घनश्याम तिवारी ने श्रद्धालुओं से अनुरोध किया कि वह समय पर कार्यक्रम में उपस्थित होकर धार्मिक लाभ प्राप्त करें कार्यक्रम का संचालन पंडित अतुल कृष्ण मिश्रा ने किया।