नर्मदापुरम। नर्मदापुरम जेल परिसर में दादागुरु ने बंदियों के जीवन उत्थान, स्वउत्थान के लिये प्रकृति केंद्रित संवाद किया। दादागुरु प्रकृति पर्यावरण, पवित्र नदियों व गौवंश के संरक्षण संवर्धन के पवित्र उद्देश्य से विगत 1392 दिनों से सिर्फ नर्मदाजल ग्रहण कर अखंड निराहार महाव्रत पर हैं।
दादागुरु प्रकृति केंद्रित जीवनशैली व्यवस्था और विकास का सूत्र देकर संरक्षण और सम्वर्धन के अभिनव अभूतपूर्व कार्यों से समाज की प्रकृति से सहज संधि कराने प्रण प्राण से कार्य कर रहे हंै। दादागुरु ने जेल के बंदियों से संवाद करते हुए कहा कि प्रकृति जहां तुम्हें पश्चाताप करने का मौका देगी, वहीं तुम्हारे जीवन में सबसे बड़ी सहायक भी सिद्ध होगी। बशर्ते तुम उस तरह से जीना सीख जाओ। तुम्हारी सभी समस्याओं का सार्थक समाधान प्रकृति के पास है। इसके लिए सर्वप्रथम हमें प्रकृति के सुंदर स्वरूप को बचाना होगा।
अपने जीवन आधारों को बचाना होगा। तभी हमारे आधार भी मजबूत होंगे। दादागुरु ने मां नर्मदा को साक्षात भगवती का रूप बताया एवं मां नर्मदा के जल, वायु, पत्थर एवं मिट्टी के कण की असाधारण क्षमता को समाज समझकर मां नर्मदा के संरक्षण में कार्य करने का संदेश दिया।
इस अवसर पर संतोष सोलंकी, जेल अधीक्षक प्रहलाद सिंह वरकड़े, उप जेल अधीक्षक हितेश बंडिया, अष्टकोण अधिकारी द्वारा कारागृह में किए जा रहे सकारात्मक कार्यों की जानकारी दादागुरु को दी। कारागृह में पौधों की नर्सरी को समाज के लिए सर्वोत्तम सेवा की उपमा समर्थ श्री दादागुरु द्वारा दी गई। इस अवसर पर दादागुरु द्वारा नीम का पौधा लगाया गया।