सिवनी मालवा। माहेश्वरी समाज (Maheshwari Samaj) ने सीताराम मंदिर (Sitaram Temple) में महेश नवमी (Mahesh Navami) का उत्सव मनाया। इस मौके पर पंडित श्याम व्यास ने मंत्र उच्चारण कर भगवान महेश (Lord Mahesh) का महाअभिषेक किया। समाज के सदस्यों ने भगवान महेश की महाआरती एवं वंदना की और भजन एवं गीत गाये।
महेश नवमी के अवसर पर समाज की महिलाओं एवं बच्चों की प्रतियोगिता हुई और विजेताओं को पुरस्कार वितरित किये। माहेश्वरी समाज के सदस्यों ने जन समुदाय केंद्र (Mass Community Center) पहुंच कर मरीजों को फल एवं बिस्कुट (Biscuits) वितरित किए तथा वृद्धाश्रम में बुजुर्गों का सम्मान कर सामग्री वितरित की। माहेश्वरी समाज की रीति के अनुसार नवविवाहित जोड़े को महेश नवमी पर पूजा के लिए यजमान बनाया जाता है। इसका सौभाग्य हिमांशु आयुषी राठी को प्राप्त हुआ। सामाजिक बंधुओं में नीरू राठी, शीला खडलोया, शीला सारडा, सुनीता सारडा, सुधा कचोलिया, सुनीता तोषनीवाल, श्वेता खडलोया, रेणु राठी, स्वाति राठी, प्रीति माहेश्वरी, पुनिता सारडा, आयुषी राठी, अंकिता हेडा, सुरेश खडलोया, विनीत राठी, नरेन्द्र सारडा, ओमप्रकाश सारडा, संपत सारडा, सचिन माहेश्वरी, दीपक राठी, विकास माहेश्वरी, प्रदीप टावरी, विपुल सारडा, सितेश सारडा, हिमांशु राठी, पूर्वम खडलोया उपस्थिति थे।
महेश जयंती के विषय में…
महेश नवमी का पावन दिन भगवान शंकर (Lord Shankar) व माता पार्वती ( Mata Parvati) को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को महेश नवमी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ व माता पार्वती की विधिवत पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पौराणिक कथानुसार इस दिन भगवान शिव प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को महेश जयंती के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव को महेश नाम से भी पूजा जाता है। महेश नवमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। माहेश्वरी समाज भगवान महेश को अपना आराध्य मानते हैं और महेश नवमी के दिन विशेष पूजा-पाठ का आयोजन करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की कृपा से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी। पौराणिक मान्यतानुसार, माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे, इनके वशंज एक बार शिकार करने के लिए जंगल चले गए, जहां उनके शिकार करने के कारण तपस्या में लीन ऋषि मुनि की तपस्या भंग हो गई। नाराज होकर उन्होंने इस वंश की समाप्ति का श्राप दे दिया, तब ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी पर भगवान शिव की कृपा इस वंश को श्राप से मुक्ति मिली और उन्होंने इस समाज को माहेश्वरी नाम दिया।