
यादें … हमे भी तुम सा इनाम मिले दुनियां में
* राजधानी से पंकज पटेरिया :
वह हंसते-हंसते रो देता था रोते-रोते हंसने लगता था, हंसाने लगता था। वह हमारे गम मोल लेता था और बदले में जी भर कर बांटता था हंसी खुशी। लुटाते हंसी खुशी का यह जखीरा, वह फानी दुनिया को अलविदा कह गया। ऐसे ही शख्सियत का नाम था राजू श्रीवास्तव। हर्ष से फर्श पर आए ऐसे ही शख्स के बारे में यह मशहूर शेर कहना मौजू लगता है कि हजारों साल तक नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।
कुल जमा 58 साल की उम्र में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ते हुए राजू भाई दुनिया से रुखसत हो गए। दर्द की गठरी दिल में दबाए, कानपुर का यह कोहिनूर दुनिया में अपनी चमक दमक दिखाकर सो गया। ऐसे अनमोल नगीने बमुश्किल कभी आते हैं शायद इसीलिए उनको परमात्मा ने एक तय वक्त के बाद अपनी दुनिया में बुला लिया। शायद उन्हें वहां ज्यादा जरूरत थी। गरीब नवाज मुश्किल हालात और मुफलिसी से लड़ते हुए आज जिस मुकाम पर पहुंचा था वह उनकी मेहनत का ईनाम था। प्रतिभा का शिखर सम्मान था। समृद्धि के स्वर्णिम शिखर स्पर्श के बाद भी राजू निहायत सरल सहज और आम पहुंच वाले सब की मदद करने वाले नेक इंसान थे।
सही कहा है कॉमेडियन एहसान कुरैशी ने कि वे जब एक मकान खरीदना चाह रहे थे, चार लाख रुपए कम पड़ गए तो राजू भाई ने उन्हें मदद की थी। राजू जी के स्वर्गीय पिता बलई काका नाम के मशहूर हास्य रस के कवि थे। एक जमाने में गांधी ग्राउंड में हुए कवि सम्मेलन शिरकत करने आए थे।
मशीनी युग के तनाव, त्रासदी, घुटन, परेशानी, अवसाद के भारी लम्हों में राजू श्रीवास्तव एक रामबाण औषधि की तरह होते थे। कितना भी भारी हो मन, कितनी भी घनी छाई हो ऊदासी, राजू भाई गजोधर भाई की कॉमेडी हंसी खुशी से नहला देती थी। हमारे आसपास के लोगों के बीच की जद्दोजहद मौजूदा सियासत के चरित्र की बातें आदि उनकी कॉमेडी के विषय होते थे। अपनी स्टैंडिंग कॉमेडी में उन्होंने भूल से भी किसी का दिल नहीं दुखाया बल्कि हंसा हंसा कर लोटपोट कर दिया। वह मोदीजी हो,अमित शाह हो, अटलजी रहे हो, लालू हो, योगी हो, हमारे मुख्यमंत्री शिवराज चौहान हो, पप्पू, छुट्टन, पुत्तन, अथवा गली के गाय, बछड़े, कुत्ते, बिल्ली सब पर कॉमेडी करते हुए वे उन्हें जीवंत कर देते थे। यही खासियत थी कि वे सब में शामिल होकर भी सबसे जुदा थे। आज इसीलिए उनकी विदा पर जमी रो रही है आसमां रो रहा है।
इन पंक्तियों से भारी मन, नम आंखों उन्हे श्रद्धांजलि…
हमे भी ऐसा इनाम मिले दुनियां में कि जमी के सारे आंसू तुम्हे याद करते है।
लगता है जाते हुए राजू भाई कह रहे हो नहीं नहीं यार क्यों मुंह लटकाए हो गजोधर हम तो तुम सभी के दिलो में रहते है और रहेंगे। इन्हई रहेंगे भैया हम कनपुरिया जो है, प्यार किए है तो काए छोड़ेंगे ?
नर्मदे हर
पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
सेक्टर सेक्टर 5, हाउस नंबर 55
ग्लोबल पार्क सिटी, कटारा हिल्स भोपाल
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