इटारसी। गुरूवार रात 35 किमी प्रति सैकंड से नीचे आ रही चमकदार उल्काओं की आतिशबाजी को दिखाने उल्का दर्शन कैंप के आयोजन की पहल विज्ञान शिक्षक राजेश पाराशर द्वारा की गई। इटारसी शहर की रोशनी एवं स्ट्रीट लाइट से कुछ दूर साकेत मोथिया ग्राम में इस कार्यक्रम को किया गया। इस वर्ष की सबसे शानदार उल्का वर्षा में आम लोगों ने उल्काओं को अपने सिर के उपर से चमकदार लाईन के रूप में गिरते देखा।
कार्यक्रम में राजेश पाराशर ने बताया कि उल्का की बौछार मिथुन ये जेमिनी तारामंडल के सामने से ही होती दिखने के कारण इसका नाम जेमिनीड उल्कापात रखा गया। यह बौछार उल्कापिंड 3200 फैथान के कारण हुई। जब पृथ्वी दिसम्बर माह में किसी खास समय पर इसके द्वारा छोड़े गये धूल से होकर गुजरती है तो धूल एवं चट्टान हमारे वायुमंडल के उपरी भाग के संपर्क में आकर जल जाती हैं, जो हमें उल्का बौछार के रूप में दिखाई देती हैं। राजेश पाराशर ने बताया कि तारे तो करोड़ों किमी दूर हैं लेकिन ये उल्का बौछार तो मात्र 100 किमी के दायरे में होती हैं, इसलिये इन्हें टूटता तारा मानना सही नहीं है।

कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मुम्बई से खगोलवैज्ञानिक शैलेष संसारे ने बताया कि उल्का बौछार को आम लोग टूटता तारा कहते हैं, इसके बारे में शुभ और अशुभ दोनों मिथक हैं। उन्होंने पांच सालों में 150 से अधिक उल्काओं को देखा है लेकिन आज तक खगोलीय जानकारी मिलने के अलावा कोई प्रभाव नहीं हुआ। इसलिये इस खगोलीय घटना का अंधविश्वास दूर कर इनका वैज्ञानिक पक्ष समझने की जरूरत है।
खुले मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में दो विशाल टेलिस्कोप की मदद से जुपिटर, सेटर्न के अलावा नेबुला का अवलोकन कराया गया। कार्यक्रम में एमएस नरवरिया ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का समन्वय किया तो बीबी गांधी, पुरषोत्तम मोदी, हरीश चौधरी ने स्काईवाचिंग कार्यक्रम में सहयोग किया। बढ़ती ठंड के बीच देर रात तक चले इस कार्यक्रम में ग्राम मोथिया के अलावा नर्मदापुरम जिले के अनेक खगोलप्रेमी दर्शक उपस्थित रहे।