इटारसी। जीवन में मन अशुद्ध होने पर बुरे विचार आते हैं, तन अशुद्ध हो तो बीमारी पैदा होती है और धन अशुद्ध हो तो वह बुरे कामों में लगता है। इसलिए मन शुद्ध करने के लिए ईश्वर सत्संग करना चाहिए और धन शुद्ध करने के लिए नेग या दान देना चाहिए। उक्त विचार आदिवासी आचार्य शंकर इरपाचे ने ग्राम सोनतलाई में व्यक्त किये।
विकासखंड केसला में पहली बार आयोजित आदिवासी धर्म दर्शन गोंडी गाथा समारोह के चतुर्थ दिवस में उपस्थित आदिवासी जन समुदाय एवं समस्त ग्रामीणों को गोंडी धर्म दर्शन पुराण का महत्व समझाते हुए आचार्य शंकर ने कहा जो विचार रामायण भागवत में हंै वही विचार हमारे धर्म दर्शन में भी हैं। परंपरा अलग-अलग है, लेकिन मार्ग सभी का एक है, वह है भक्ति का मार्ग। इस मार्ग पर जो सच्चे मन से चलता है देवी-देवता उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं और उसका जीवन हमेशा उज्ज्वल रहता है।
आचार्य श्री ने कहा कि आदिवासी जनमानस भारतवर्ष की एक अहम कड़ी है। इन्हीं से जल, जंगल और जमीन सुरक्षित है। इन्हें इनका पूरा अधिकार भी मिलना चाहिए। चाहे वह धर्म क्षेत्र में हो, समाज में हो, राजनीति में हो या व्यवसाय व नौकरीपेश्श में हो। सब जगह हम मूल निवासियों को बराबर का अधिकार प्राप्त होना चाहिए और इन सब अधिकारों को पाने के लिए आदिवासी जनमानस को भी चाहिए कि वह शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़े।
अपने समाज को पूर्ण शिक्षित करें। इस प्रकार धर्म प्रसंग के साथ ही सांसारिक ज्ञान भी आचार्य शंकर ने उपस्थित जन समुदाय को प्रदान किया। कथा समारोह के अंतिम प्रहर में महा आरती की गई जिसमें समस्त आदिवासी जनसमुदाय में अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नृत्य के माध्यम से सामूहिक आरती की। उपरोक्त आदिवासी धर्म दर्शन समारोह के लिए ग्राम सोनतलाई में व्यापक व्यवस्था की गई है।