मप्र के हरदा में विश्नोई समाज ने किसी के निधन के बाद मृत्यु भोज बन्द करने की सर्वत्र स्वागत योग्य पहल की है। विश्नोई समाज के सारण परिवार ने बैठक बुलाकर दिवंगत माँ दुर्गा बाई के तीन बेटो ने जब यह इच्छा व्यक्त की तो सभी ने सहमति दे दी और मृत्यु भोज पर खर्च होने वाली करीब 1 लाख 67 हजार की राशि विभिन्न समाजिक कार्यों पर खर्च करने के लिए दान कर दी। दुर्गा बाई के बेटों ने अपनी दिवंगत माँ की स्मृति को अक्षुण्ण रखने के लिए 101 छायादार पोधे भी लगाने की भी घोषणा की है। विश्नोई सारंग समाज का यह कदम निसंदेह बेहद सराहनीय है। यू धीरे धीरे इस कुरीति पर विराम अन्य समाज ने भी लगाए है, जो यकीनन काबिले तारीफ है। फिर भी इन कुरीतियों के तिमिर पाश में अभी भी अनेक समाज जकड़े है खास तौर से कई अंचलों में यह कुरीति अमरबेल की तरह फल फूल रही है। कहीं इसे मोसर कहते, रोटी, तेरहवीं तो कहीं रसोई। तकलीफ की बात यह कि, सूत्रों के मुताबिक इसकी इजाजत के लिए गरीब को अमीर साहब लोगो की सेवा करनी होती है। वाकया साहब के मुखबिर चमचे टोह लेते रहते है कि किस गाँव में इस तरह के मृत्युभोज की तैयारी चल रही है। बस इतला साहब तक पहुंचते दबाव शुरू हो जाता, चूंकि एक निश्चित संख्या से ज्यादा लोगो को भोजन कराने की सरकारी इजाजत नहीं। लिहाजा लोग बीच का रास्ता निकाल, इस सडी परम्परा का निर्वाह करते आ रहें है। ऎसे में इस भयावह नागपाश के लिए समाजिक संस्थाओं, सरकारी उपक्रमों, आप, हम सबको जन जागरण कर माहौल बनाना होगा। पोस्टर प्रदर्शनी, नुक्कड़ आदि के माध्यम से इस अज्ञान अँधेरे को खत्म कर, नया प्रकाश फैला लोगो को जागरूक करना होगा। तब जरूर इससे उबरने की उम्मीद की जा सकती है। ओर इस परम्परा पर स्थाई विराम लग पाए, सरकार को इस दिशा में जनमत आमन्त्रित करना चाहिए।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateria)
वरिष्ठ पत्रकार कवि
संपादक शब्द ध्वज, ज्योतिष सलाहकार
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