बहुरंग: दर्द हल्का है सांस भारी है, जिये जाने की रस्म जारी है…

बहुरंग: दर्द हल्का है सांस भारी है, जिये जाने की रस्म जारी है…

विनोद कुशवाहा/ दुनिया के तमाम एक्सपर्ट ये कह रहे हैं कि समय रहते यदि भारत ने तैयारी कर ली होती तो इस तबाही को रोका जा सकता था। देशभर के वैज्ञानिकों का भी ये मानना है कि मई के पहले पखवाड़े में आने वाली कोरोना की दूसरी लहर तीन गुना खतरनाक होगी और तब लगभग 35 लाख सक्रिय मरीज होंगे। भारत में मांग के बावजूद कोविड रोधी 6 करोड़ टीके निर्यात किये जा रहे हैं। इसके पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाने के लिए बांग्लादेश को लाखों टीके मुफ्त भेंट कर आए। विपक्ष ने उनकी इस यात्रा को चुनावी यात्रा करार दिया था। विदेश मंत्री जयशंकर (External Affairs Minister Jaishankar) ने टीकों के निर्यात किये जाने के संदर्भ में अपने स्पष्टीकरण में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग से बाकी तीन चरणों के चुनाव एक दिन में पूरे कराने की अपील की थी लेकिन उसका आयोग पर कोई असर नहीं हुआ। चुनाव आयोग भी कहीं न कहीं अपने को असहाय पा रहा है।

पश्चिम बंगाल में रोड शो और वाहन रैली पर रोक के बावजूद नेता मान नहीं रहे। केवल राहुल गांधी व ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में होने वाली अपनी रैलियों को रद्द किया है। अब भाजपा कह रही है उनकी रैलियों से वैसे भी कुछ होना जाना नहीं था। मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी कोरोना के शुरुआती दौर में फरार रहे। पूछने पर बताया गया कि मंत्री जी दमोह विधानसभा के उपचुनाव में व्यस्त हैं। हालांकि वे खुद एक डॉक्टर हैं और स्थिति की गम्भीरता को बेहतर समझते थे। जब रोग लाइलाज हो गया तब डॉक्टर साहब फोटो खिंचवाने के लिए पीपी किट पहन कर खड़े हो गए। वो तो भला हो चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग का जिन्होंने सही वक्त पर मोर्चा संभाल लिया।

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सभा सांसद विवेक तन्खा सहित पांच अन्य जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कहा है कि-हम मूक दर्शक नहीं बने रह सकते। सरकार को उसका कर्तव्य याद दिलाने हेतु कोर्ट ने 19 बिंदु भी तय किये थे। माननीय उच्च न्यायालय ने जरूरतमंदों को एक घण्टे में रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध कराने के लिए निर्देशित किया है। मगर हमारे माननीयों ने हाई कोर्ट के निर्देशों को भी हवा में उड़ा दिया। तब मजबूरी में हाई कोर्ट ने मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव को तलब कर के ये बताने के लिए कहा कि कोर्ट के निर्देशों का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट का कहना है कि जो सत्ता की बागडोर संभाल हुए हैं वही मौजूदा स्वास्थ्य आपदा के लिये जिम्मेदार हैं। चुनाव खर्च के लिए तो उनके पास पैसा है पर जन स्वास्थ्य के लिए बहुत कम बजट है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए थे कि ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित करें। हम अब और मरीजों को मरता हुआ नहीं देख सकते। बाद में हाई कोर्ट ने ये भी चेतावनी दी कि जो भी ऑक्सीजन सप्लाई रोकेगा उसे हम छोड़ेंगे नहीं। माननीय उच्च न्यायालय ने शनिवार को तो यहां तक कह दिया है कि यदि केंद्र, राज्य अथवा स्थानीय प्रशासन के किसी भी अधिकारी ने ऑक्सीजन सप्लाई में रुकावट डालने की कोशिश की तो उसे फांसी पर चढ़ा देंगे।

इधर सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित है। उसने भी केंद्र को लताड़ लगाई है। बिगड़ते हालात पर खुद संज्ञान लेकर कोर्ट ने कहा है- “देश के हालात नेशनल इमरजेंसी जैसे हैं”। कोर्ट ने 4 मुद्दों पर केंद्र सरकार को निर्देश भी दिए हैं जिनमें वैक्सीन, ऑक्सीजन सप्लाई जैसे मुद्दे शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है। आश्चर्यजनक तथ्य ये है कि अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 तक हमारे देश ने ही नौ हजार मीटर टन से भी अधिक ऑक्सीजन निर्यात की है।

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एक ही वैक्सीन की अलग – अलग कीमतें रखीं हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का ध्यान इस ओर आकर्षित कर अपना विरोध दर्ज कराया है। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त देशी कम्पनी केन्द्र सरकार को जहां 150 रुपये में यह वैक्सीन उपलब्ध करा रही है वहीं दूसरी ओर राज्य सरकारों के लिए कम्पनी ने 400 रुपये कीमत निर्धारित की है। हास्यास्पद तो यह है कि कम्पनी ये वैक्सीन निजी अस्पतालों को 600 रुपये में बेचने जा रही है। अब निजी अस्पताल मरीजों से कितनी कीमत वसूलेंगे ये जगजाहिर है। ऐसे ही दूसरी स्वदेशी कम्पनी भारत बायोटेक अपनी कोवैक्सीन केंद्र को 150 रुपये, राज्यों को 600 रुपये, निजी अस्पतालों को 1200 रुपये में प्रति डोज बेचेगी। कांग्रेस नेता जयराम रमेश का सवाल अपनी जगह सही ही है कि – “सीरम का टीका दुनिया को सस्ते में दे दिया गया लेकिन देश में ये महंगा क्यों है?”

मध्यप्रदेश पहुंचाए जा रहे ऑक्सीजन के टैंकर ही गायब हो रहे हैं। या रास्ते में रोक दिए गए। इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यूपी के मुख्यमंत्री योगी तथा गुजरात के मसले पर मुख्यमंत्री रुपाणी को कहना पड़ा। हमीदिया अस्पताल के सेंट्रल ड्रग स्टोर से लगभग 863 रेमडेसिविर इंजेक्शन चोरी चले गए थे। बाद में एफ आई आर हुई तो 400 इंजेक्शन अस्पताल में ही मिल गए। इंदौर के शैल्बी अस्पताल से 139 रेमडेसिविर इंजेक्शन चोरी हो गए। शाजापुर अस्पताल में रेमडेसिविर की ऐसी लूटपाट मची की मेडिकल टीम को वहां से भागना पड़ा। दमोह में ऑक्सीजन सिलेंडर ही लूट लिये गए। इस सबके बीच मुंबई में एक ऐसा शख़्स शाहनवाज शेख भी है जिसने बाईस लाख की एस यू वी बेचकर ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदे और उन्हें जरुरतमंदों तक पहुंचाया। इन्हें आप ‘ऑक्सीजन मेन’ नहीं कहेंगे तो क्या नाम देंगे ।शाहनवाज ने बकायदा एक हेल्प नंबर भी जारी किया है। अब तक वे 4000 लोगों की मदद कर चुके हैं।

इधर मध्यप्रदेश के दमोह में प्रदेश के ही एक केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल से किसी युवक ने जब ऑक्सीजन की मांग की तो उन्होंने उसे अपना हाथ दिखाते हुए धमकी दी कि- ‘दो खाओगे’। युवक का आक्रोश स्वभाविक था मंत्री जी लेकिन आपको तो अपना आपा नहीं खोना चाहिए। खैर। इधर एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया कहते हैं रेमडेसिविर कोई जादू की छड़ी नहीं है। चूंकि हमारे पास कोई एंटी वायरल ड्रग नहीं है इसलिये इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। ये सिर्फ उन्हीं मरीजों को दिया जाना चाहिए जिनका ऑक्सीजन लेबल निचले स्तर पर पहुंच गया हो तथा जिनमें संक्रमण अधिक हो।

इटारसी के बर्तन व्यवसाय करने वाले व्यापारियों ने तहसीलदार को एक ज्ञापन सौंप कर मांग की है कि उन्हें भी अपना व्यवसाय करने की अनुमति दी जाए। उल्लेखनीय है कि लॉक डाउन के दौरान किराना एवं होटल संचालकों को होम डिलीवरी की सुविधा दी गई है। जबकि सीज़न होने के बावजूद कपड़ा और बर्तन सहित अन्य दुकानें बंद करा दी गई हैं। पिछले वर्ष भी वैवाहिक आयोजन एवं त्यौहारों पर दुकानें बंद रहने से इन दुकानदारों को भारी नुकसान हुआ है।

श्योपुर में तो लॉक डाउन के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए। स्वभाविक भी है। निचले तबके का गरीब आदमी क्या होम डिलीवरी का आर्डर देने में सक्षम है? क्या वह ऑन लाइन शॉपिंग कर सकता है? वह अगर मास्क भी घर भूल आता है तो उसको मुर्गा बनाया जाता है, उससे दंड बैठक लगवाई जाती है, उसको बेदर्दी से पीटा जाता है, उसे थाने में घंटों बिठाकर रखा जाता है, खुली जेल के नाम पर उसको जेल में ठूंसा जाता है।

जनता असहाय है। सत्तारुढ़ दल के नेता भी अपनी सरकार के होते हुए स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं। म प्र के भाजपा के एक मंडल अध्यक्ष तो ऐसी स्थिति में अपनी असहायता व्यक्त करते हुये सोशल साईट पर अपनों को खोने का दुखड़ा रो रहे हैं। केंद्र सरकार के एक ताकतवर मंत्री व्ही के सिंह भी अपने एक मुंहबोले भाई के लिए बेड तथा अन्य व्यवस्थाओं हेतु लोगों से ही बेहद मार्मिक अपील कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी अपने संदेश में कहते हैं राज्य सरकार निर्णय लें। राज्य सरकार कलेक्टर पर थोप रही है। कलेक्टर अपनी बला ‘आपदा प्रबन्धन समिति’ पर टाल रहे हैं। “जनता कर्फ्यू” की आड़ में मुख्यमंत्री प्रदेश भर में ‘लॉक डाउन’ लगा रहे हैं। कुल मिलाकर जनता को ही जिम्मेदार बनाया जा रहा है और जनता को ही भोगना भी है।

vinod kushwah

विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)

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