बहुरंग: गांधी वाचनालय : ये क्या जगह है दोस्तो
विनोद कुशवाहा/ पिछले कुछ दिनों से इटारसी शहर का गांधी वाचनालय चर्चा में है क्योंकि स्थानीय नगरपालिका परिषद ने उसमें पुस्तकें रखने की अपेक्षा उसको कबाड़ खाना बनाना ज्यादा बेहतर समझा । वैसे भी गांधी वाचनालय का अब यही उपयोग रह गया है । पहले कभी डॉ चन्द्रकांत शास्त्री राजहंस के समय में जो वाचनालय नगर की साहित्यिक , सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था उसी वाचनालय को अब आधार कार्ड बनाने का केंद्र बना दिया गया है। इससे भी ज्यादा दुर्गति वाचनालय की तब होती है जब या तो इसमें रामलीला मंडली को ठहरा दिया जाता है या कभी इसे किसी हॉकी टीम के हवाले कर दिया जाता है ।
मैं सत्तर के दशक से इस वाचनालय का सदस्य रहा हूं । ग्रंथपाल के रूप में डॉ चन्द्रकांत शास्त्री राजहंस ने जितना व्यवस्थित इस वाचनालय को रखा बाद में कोई भी लायब्रेरियन उसको उतना व्यवस्थित नहीं रख पाया । शास्त्री जी ने तो गांधी वाचनालय के आसपास एक खूबसूरत उद्यान भी विकसित किया था जिसे उन्होंने ही श्यामल उद्यान का नाम दिया था। मानसरोवर साहित्य समिति द्वारा शरद पूर्णिमा पर आयोजित की जाने वाली पारम्परिक काव्य गोष्ठी भी इसी उद्यान में रखी जाती थी । उल्लेखनीय है कि डॉ चंद्रकांत शास्त्री राजहंस ने ही मानसरोवर साहित्य समिति की स्थापना भी की थी जो इतने वर्षों बाद आज भी सक्रिय है । वर्तमान में इस संस्था के अध्यक्ष राजेश दुबे हैं ।
डॉ चन्द्रकांत शास्त्री के कार्यकाल में चार लकड़ी की अल्मारियां किताबों से भरी होती थीं । हिंदी अंग्रेजी की प्रत्येक पत्रिका या समाचार पत्र वाचनालय में नियमित रूप से पढ़ने को मिलते थे।
वाचनालय की व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित करने के लिए नगरपालिका परिषद ने एक भृत्य मोहन को भी यहां रखा था । साथ ही श्यामल उद्यान की देखरेख एक माली देवनारायण करता था । पाठकों के लिए पीने का पानी हमेशा उपलब्ध रहता था ।
शास्त्री जी इतने सख्त एवं अनुशासन प्रिय थे कि लायब्रेरी में ‘ पिन ड्राप सायलेन्स ‘ रहता था । पाठक भी अनुशासित रहते थे । वाचनालय सुबह शाम दोनों समय खुलता था ।
पाठकों को यदि पिछली किसी तारीख का अखबार देखना होता था तो उन्हें रिकार्ड रूम में हर अखबार फाइल किया हुआ मिल जाता था ।
पत्रिकायें शास्त्री जी के कक्ष में रखी रहती थीं जहां से पाठक उन्हें एक निश्चित समय के लिए ले जाते थे लेकिन उनको वहीं सामने हॉल में बैठकर ही पढ़ना होता था । हॉल में पढ़ने के लिए दैनिक , साप्ताहिक , पाक्षिक प्रत्येक अखबार भी पढ़ने के लिये उपलब्ध रहता था ।
वाचनालय में प्रेमचंद , शरतचन्द्र , गुरुदत्त , शिवानी से लेकर ओशो तक का साहित्य पढ़ने के लिये उपलब्ध था परंतु उसके लिए वाचनालय का नियमित सदस्य बनना आवश्यक था । जिसका एक निश्चित सदस्यता शुल्क था । साथ ही मासिक शुल्क भी देना पड़ता था । इतना ही नहीं निर्धारित समय से ज्यादा समय तक अपने पास पुस्तक रखने पर पेनाल्टी भी देना पड़ती थी ।
शास्त्री जी ने वाचनालय को सुचारूरूप से संचालित करने के लिए बेहद सख्त नियम बनाए थे । जो सब पर लागू होते थे । उनके सामने हर नागरिक एक पाठक की हैसियत से ही खड़ा होता था । इसके शास्त्री जी को दुष्परिणाम भी भुगतने पड़े ।
हुआ यूं कि कांग्रेस के शासन काल में जब तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष के पुत्र ने वाचनालय से कोई पुस्तक ले जानी चाही तो डॉ चन्द्रकांत शास्त्री ने नियमों का हवाला देते हुए उन्हें पहले सदस्य बनने की सलाह दी । बस होना क्या था शास्त्री जी को निलंबित कर दिया गया । उन्होंने बहाल होने की कोशिश भी नहीं की । जब बाबू सरताज सिंह नगरपालिका अध्यक्ष बने तब उन्होंने शास्त्री जी को तत्काल बहाल किया । न केवल बहाल किया बल्कि उन्हें वे घर से लेकर आए । ऐसा बड़प्पन आजकल के नेताओं में कहां देखने को मिलता है । खैर ।
वर्तमान समय में जब भी इस वाचनालय को पुनः सुचारूरूप से संचालित करने की बात निकलती है तो मुख्य नगर पालिका अधिकारी बजट का रोना लेकर बैठ जाती हैं जबकि हाल ही में नगरपालिका ने 1 अरब 88 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा था जो पास भी हो गया । जहां चाह ही नहीं है वहां राह क्या निकलेगी ।
एक समय था जबकि बजट का रोना रोने वाली नगरपालिका अल्प बजट होने पर भी शहर में तीन वाचनालय संचालित करती थी । पुरानी इटारसी का कक्कू जी वाचनालय , गांधी वाचनालय और देशबंधु स्कूल में महिला वाचनालय । अफसोस कि अब खंडहर बता रहे हैं कि इमारत कितनी बुलंद थी ।
दरअसल कोई भी नगर पालिका अध्यक्ष अथवा सी एम ओ रहा हो किसी ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया । काश् कि हमारे जनप्रतिनिधियों ने भी निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर सोचा होता । रही बात वर्तमान मुख्य नगरपालिका अधिकारी की तो वे गले पड़ी ढोल हैं । बजाते रहो ।
उल्लेखनीय है कि आपदा प्रबंधन की बैठक में
सोशल डिस्टेंस के नियम के उल्लंघन को लेकर विश्व हिंदू परिषद सी एम ओ के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराने का मन बना रही है । अब जब अपने ऊपर तलवार लटक रही है तो मुख्य नगरपालिका अधिकारी , नगरपालिका प्रशासक पर सारा दोष मढ़ रही है । जो कुछ भी हो एक न एक दिन तो सच सामने आएगा ही ।
ये निश्चित है कि गांधी वाचनालय के सुचारू रूप से संचालन के लिए योग्य कर्मचारी की उपलब्धता भी आवश्यक है क्योंकि जिस वाचनालय में विपिन जोशी , डॉ चंद्रकांत शास्त्री राजहंस , दिनेश द्विवेदी जैसी शख्सियत ने ग्रंथपाल के पद को सुशोभित किया हो उस पद पर किसी ऐरे गैरे को नियुक्त करना उक्त पद की गरिमा के खिलाफ होगा ।
शास्त्री जी को इस शहर के लोग पहचान नहीं पाये । उनकी पहचान बस इतनी थी कि उनके हाथ में हमेशा एक छाता और ट्रांजिस्टर रहता था । इसके अलावा उनके साथ दो कुत्ते भी चलते थे । जिनका नाम शेरू और वीरू था । जबकि उनके पूरे नाम के साथ ही उनकी विद्वता भी प्रमाणित होती थी ।
वेदमार्ग प्रतिष्ठापनाचार्य , शास्त्रार्थ केसरी डॉ चन्द्रकान्त शास्त्री ‘ राजहंस ‘ एम एस सी , एम ए गोल्ड मेडेलिस्ट । उनका अपना परिवार हरिद्वार में है । बहुत कम लोगों को जानकारी है कि शास्त्री जी का बेटा अविराम इंजीनियर है जो अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता को देता है ।
डॉ रामकुमार वर्मा , अजातशत्रु जैसे लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार भी शास्त्री जी को अपना गुरु मानते थे । मन्मथनाथ गुप्त , मगनलाल जी बागड़ी के साथ शास्त्री जी ने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था मगर उन्होंने कभी इसे जाहिर नहीं किया । न ही शास्त्री जी ने कभी शासन से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का कोई लाभ लिया ।
आज यदि शास्त्री जी जीवित होते तो गांधी वाचनालय की ये दुर्दशा देखकर निश्चित ही दुखी होते । आदरणीय गुरुदेव हम आपको कभी नहीं भूल पायेंगे । आप हम सबको हमेशा याद रहेंगे ।
छाया चित्र : स्व श्री रवि पांडे’ अकेला’ , स्व डॉ चन्द्रकांत शास्त्री ‘राजहंस’ , विनोद कुशवाहा ‘अमित’ , डॉ अनिल सिंह ‘आजमी’ गांधी वाचनालय के श्यामल उद्यान में ।
विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)