कीर्ति शेष: मंगलेश डबराल पहाड़ पर लालटेन बुझ गई

कीर्ति शेष: मंगलेश डबराल पहाड़ पर लालटेन बुझ गई

झरोखा: पंकज पटेरिया: हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि प्रखर पत्रकार कवि मंगलेश डबराल कोरोना से जूझते हुए बुधवार 9 दिस.2020 शाम 7:15 एम्स में हमारे बीच से विदा हो गए। 72 वर्षीय डबराल कोरोना से ग्रस्त होते ही गाजियाबाद में भरती रहे, स्वास्थ्य में सुधार नहीं होने पर उन्हें एम्स में भर्ती किया गया, लेकिन यहां भी कुछ सुधार नहीं हुआ और वे विदा हो गए। डबराल जी आधुनिक कविता के एक ऐसे दमखम हस्ताक्षर थे, जिन्होंने अपने बलबूते, पहाड़ पर तूफानी हवाओ से दो-दो हाथ करते हुए अपनी लालटेन जलाई थी। जिसे वे वक्त के झंझावातों से लड़ते बचाए रहे, लेकिन जीवन की लौ को मृत्यु से नहीं बचा पाए। पहाड़ पर लालटेन कीर्ति शेष कवि मंगलेश डबराल की प्रसिद्ध कृति है।
कल्पना करते मन सहम जाता है, सायं सायं दूर तक फैला सन्नाटा, घनघोर अंधेरा, दुर्गम पहाड़, तेज रफ्तार हवाओ का तांडव, ऐसे दम निकाल देने वाले हालत में अदनी सी लालटेन को जलाने…ओर अपने वजूद का तेल भर भर उस लालटेन की लौ को बचाए रखने का हौसला सिर्फ ओर सिर्फ मंगलेश जी ने किया। उनके इस जोखिम भरी कोशिश को सब ने सलाम किया और तारीफ के फूल उन पर ताली बजाकर चढ़ाए । इसी हौसले ने उन्हें, खेमेबाजी को मुंहतोड़ जवाब बहुत शालीनता से देते हुए अपनी पहचान विशिष्ठ बनाये रखने की ताकत दी।

उत्तराखंड में 1949 में जन्मे मंगलेश जी ने पत्रकार रूप में अपनी यात्रा अमृत प्रभात प्रति पक्ष से शुरु की और अपने मप्र मे भी विशिष्ठ प्रतिभा परिमल से पूर्व गृह पत्रिका को महकाया। उनका अखबार नवीज़ गोया पत्रकार व्यक्तिव अलग तर्ज तरन्नुम और तेवर का था। जिसके कारण वे जनसत्ता जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र के पहली पंक्ति के सम्मानित पत्रकारों में गिने जाने लगे थे। अकादमी पुरुस्कार सहित आधा दर्जन सम्मान से नवाजे जाने के बाद वे अत्यन्त सरल विनम्र और आत्मीय रहे। कोई वहम सुरखाब के पंख लग जाने का कभी नहीं पाला, न जमीर के खिलाफ जाकर कोई समझौता किया। उनके परिवार में पत्नी एक पुत्र ओर एक पुत्री है। वे पहाड़ के वाशिंदे थे। पहाड़ की छाती फोड़ कर निकले, पहाड़ी झरने से चट्टनो को तोड फोड अपना रास्ता बनाते खुद्दारी से चले अपनी रो में बहे, अपना रास्ता बनाया और महालय में विलय हो गए। अपितु उनकी आत्मा के दिव्य दर्शन उनकी पांच कृति की अक्षर देह में अनुभव किए जा सकते है। स्मृति को नमन।

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पंकज पटेरिया (Pankaj Pateria)
वरिष्ठ पत्रकार/कवि
सम्पादक: शब्दध्वज,
9893903003,9407505391

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