अब टाटा, बाय-बाय के स्थान पर शुभ मंगल हो नारायण

अब टाटा, बाय-बाय के स्थान पर शुभ मंगल हो नारायण

नर्मदापुरम। संस्कृत संभाषण शिविर (Sanskrit Speech Camp) में दूसरे दिन स्वस्तिवाचन (Swastivachan) और गणेश वंदना (Ganesh Vandana) के बाद संस्कृत प्रशिक्षक कांची परसाई (Sanskrit Instructor Kanchi Parsai) ने मणिद्वीप में संस्कृत भाषा की वाक्यवाली समझाई। इस दौरान उन्होंने संस्कृत की व्याकरण पुर्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुसकलिंग को सरल भाषा में समझाया और उपस्थित विद्यार्थियों से संस्कृत में प्रश्न और उनके उत्तर हल करना बताया। इसके साथ ही देववाणी संस्कृत के शब्दों को पहचानना बताया। अत्र, कुत्र, अन्यत्र और सर्वत्र को उदाहरण देकर समझाया। ज्ञात हो प्रशिक्षक कांची परसाई वाराणसी से शास्त्री की पढ़ाई कर रहीं है। उनका उद्देश्य हैं कि देववाणी संस्कृत हर घर में बोली जाए।

प्रयास करने वाले की हार नहीं होती

संस्कृत संभाषण शिविर के दूसरे दिन आचार्य सोमेश परसाई ने उपस्थित विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि कभी भी प्रयास करने वालों की हार नहीं होती है और प्रयास करना ही सफलता की कुंजी है। उन्होंने उपस्थित विद्यार्थियों को बताया कि हमें हमारी जानकारी होना आवश्यक है। सभी को अपना गोत्र,कुलदेवी का नाम मालूम होना चाहिये। इसके साथ ही रामचरित मानस के रचयिता, रामायण के रचयिता और महाभारत के रचयिता का परिचय दिया। आचार्य परसाई ने बताया कि शंकराचार्य जयंती (Shankaracharya Jayanti) वैशाख शुक्ल पंचमी को मनाई जाती है। भारत में 4 शंकराचार्य है। उन्होंने आगे बताया कि हमें कहीं जाना है तो अब टाटा-बाय-बाय के स्थान पर शुभ मंगल हो नारायण कहना है। मेहमान के आने पर उनका आदर सत्कार करना चाहिए।

प्रणाम करने से क्या होता है

आचार्य श्री ने उदाहरण देकर बताया कि प्रणाम करने से क्या होता। जिस प्रकार भगवान गणेश जी के पास आभामंडल है। ऐसे ही सभी के पास आभामंडल मौजूद रहता है। आभामंडल दो प्रकार का होता है- सकारात्मक और नकारात्मक, लेकिन जो भगवान का भजन करता है उसके पास सकारात्मक आभामंडल होता है। जब सकारात्मक आभामंडल वाले व्यक्ति को हम प्रणाम करते है तो उनकी सकारात्मक ऊर्जा हमारे अंदर प्रवेश करती है। इसे सुदर्शन क्रिया कहते है। आचार्य ने बताया कि असफलता ही सफलता की कुंजी है। इसलिए हमेशा प्रयास करते रहना चाहिए।

डिजिटल मार्केट और साइंटिस्ट युग में समय का अभाव

आज के डिजिटल मार्केट (Digital Market) और साइंटिस्ट युग (Scientific Age) में समय किसी के पास समय नहीं है। ऐसे में जो भी मोबाइल (Mobile) को अपने से दूर करके बच्चों और परिवार को समय देता है। तो मान लीजिये उसका परिवार नहीं मंदिर है। आचार्य परसाई ने बताया कि संस्कार कब पनपेंगे, जब हम अच्छी बातें करेंगे और संस्कृति तब पनपेगी जब हम अच्छी वाणी बोलेंगे और सबके पीछे हमारी मूल भाषा संस्कृत ही है। जिस प्रकार से जगत जनती सारे विश्व की जननी हैं ऐसी ही संस्कृत सभी मात्र भाषाओं की जननी है। हिन्दू सनातन धर्म में एक-एक व्यक्ति मोती है, लेकिन इनको बाधने के लिये सस्कृत और संस्कार के धागे की जरूरत है। इसलिए हमारी देववाणी सभी के बीच में आये जिससे हम संस्कृत और संस्कृति को बचा सके।

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AUTHORRohit

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