शारदीय नवरात्रि 2022 जाने कलश स्थापना शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पूजा सामग्री, महत्व, मां दुर्गा को प्रसन्न करने के मंत्र, कथा, आरती
शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navratri)
हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है ऐसे तो वर्ष वर्ष भर में 4 नवरात्रि आती हैं 2 गुप्त नवरात्रि, एक चैत्र नवरात्रि और एक शारदीय। इनमें से शारदीय नवरात्रि को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्रि में 9 दिनों के लिए मां दुर्गा की प्रतिमा को घरों में स्थापित किया जाता है और मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योति जलाई जाती है।
मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा की जाती हैं। नवरात्रि के इस पावन पर्व के दौरान 9 दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है अंत में दशमी तिथि के दिन को दशहरा के रूप में मना कर रावण का दहन किया जाता है। इस बार शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर 2022 से शुरू होगी और 5 अक्टूबर को समाप्त होगी।
शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना शुभ मुहूर्त (Auspicious time for setting up the vase)
- अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा प्रांरभ- 26 सितंबर 2022 सुबह 03:24 से 27 सितंबर 2022 सुबह 03:08 तक।
- घटस्थापना मुहूर्त- 26 सितंबर 2022, सुबह 6:20 से सुबह 10:19 तक।
- अभिजीत मुहूर्त- 26 सितंबर 2022, सुबह 11:54 से दोपहर 12:42 तक।
शारदीय नवरात्रि पूजा विधि (Sharadiya Navratri Puja Method)
- नवरात्रि के 9 दिनों तक सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर मां की प्रतिमा पर जल चढाना चाहिए।
- मां की प्रतिमा की स्थापना शुभ मुहूर्त देखकर ही करना चाहिए।
- कलश स्थापना करते समय, कलश में गंगाजल भरें और कलश के मुख पर आम के पत्ते रखें।
- नारियल को लाल चुनरी के साथ लपेट कर आम के पत्ते के ऊपर रखना चाहिए।
- मिट्टी के बर्तन पर जौके बीज बोएं और नवमी तक हर रोज कुछ पानी छिड़कावं करना चाहिए।
- नौ दिनों में मां दुर्गा के मंत्रों का जाप कर फूल, कपूर, अगरबत्ती, और व्यंजनों के साथ मां की पूजा करनी चाहिए।
- नवमी के दिन कन्याओं को कन्या भोज कराना चाहिए।
- दुर्गा पूजा के बाद अंतिम दिन घूमधाम से मां की प्रतिमा को विसर्जन करना चाहिए।
शारदीय नवरात्रि महत्व (Significance of Sharadiya Navratri)
हिंदू धर्म में कहा जाता है कि शारदीय नवरात्रि धर्म, अधर्म पर और सत्य, असत्य पर जीत का प्रतीक है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन नौ दिनों में मां दुर्गा धरती पर आती है। धरती को उनका मायका कहा जाता है। उनके आने की खुशी में इन नौ दिनो धूमधाम से मनाया जाता हैंं।
श्रध्दालु पहले दिन मांं की प्रतिमा स्थापित कर इन नौ दिनों तक व्रत-उपवास करते हैं और पूर्ण भक्ति भाव से माता की अराधना करते हैं मां दुर्गा के हर स्वरूप की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता रानी अपने भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं।
शारदीय नवरात्रि पूजा सामग्री (Sharadiya Navratri Puja Material)
लाल कपड़ा, चौकी, कलश, कुमकुम, लाल झंडी, पान-सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, जयफल, लौंग, बताशे, आम के पत्ते, कलावा, केले, घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, मिश्री, ज्योत, मिट्टी का बर्तन, मिट्टी, एक छोटी चुनरी, एक बड़ी चुनरी, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों का हार, सूखे मेवे, मिठाई, लाल फूल, गंगाजल और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि।
शारदीय नवरात्रि पर मां दुर्गा को प्रसन्न करने के मंत्र (Mantras to please Maa Durga on Shardiya Navratri)
- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते।।
- ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
- दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
- या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
- या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
- या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
- या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
- या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
- या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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शारदीय नवरात्रि माँ दुर्गा के नौ रूप और महत्व (Shardiya Navratri Nine Forms and Significance of Maa Durga)
माता शैलपुत्री : नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री को मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप माना जाता है। माता शैलपुत्री की पूजा से चंद्रमा का दोष समाप्त हो जाता है।
माता ब्रह्मचारिणी : नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। मां ब्रह्मचारिणी को मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से मंगल दोष समाप्त हो जाता हैं।
माता चंद्रघंटा : नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां चंद्रघंटा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। उनकी पूजा से शुक्र ग्रह के दोष दूर होते हैं।
माता कूष्मांडा : नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्माडां की पूजा की जाती है। यह मां दुर्गा का चौथा स्वरूप है, माता का यह स्वरूप सूर्य की दशा को नियंत्रित करता है, कूष्मांडा माता के पूजन से सूर्य के कुप्रभावों से मुक्ती मिलती है।
मां स्कंदमाता : नवरात्रि के पांचवे दिन मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। मां स्कंदमाता का यह स्वरूप बुध ग्रह को नियंत्रित करता है। स्कंदमाता के पूजन से बुध ग्रह के दोष दूर हो जाते हैं।
माता कात्यायनी : नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती हैं। मां का यह स्वरूप बृहस्पति की दशा को नियंत्रित करता है। कात्यायनी माता के पूजन से बृहस्पति का दोष दूर हो जाता है।
माता कालरात्रि : नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप शनि की दशा को नियंत्रित करता है। मां कालरात्रि की पूजा से शनि के दोष दूर हो जाता है।
माता गौरी : नवरात्रि के आठवें दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का यह रूप राहु की दशा को नियंत्रित करता है। माता महागौरी के पूजन से राहु दोष दूर हो जाते हैं।
माता सिद्धिदात्री : नवरात्र के 9वें दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा होती है। माता का यह स्वरूप केतु की दशा को नियंत्रित करता है। सिद्धिदात्री माता के पूजन से केतु दोष दूर हो जाता है।
शारदीय नवरात्रि की पौराणिक कथा (Legend of Shardiya Navratri)
पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नामक एक राक्षक ने कडी तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर अमर होने का वर मांगा था कि दुनिया में कोई भी देव, दानव या धरती पर रहने वाला मनुष्य उसको नहीं मार सके। इस वरदान को पाने के बाद महिषासुर आतंक मचाने लगा उसके आतंक को रोकने के लिए शक्ति के रुप में मां दुर्गा का जन्म लिया और मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक युद्ध चला और दसवें दिन मां ने महिषासुर का अन्त कर दिया।
मां दुर्गा आरती (Maa Durga Aarti)
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा मूर्ति।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुरनर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख.सम्पत्ति पावै॥
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