नज़्म: मोहब्बत और मौत…
ऐ खुदा
ये कैसा है मंज़र कि
आज मोहब्बत और मौत
एक साथ हैं दर पर
अब तू ही बता
मौत को गले लगाऊं
या सजदा करूं मोहब्बत का
रूखसती का
एहतमाम करूं या
जश्न मनाऊं मोहब्बत का
मौत की राह पर
चलूं या बनूं
मुसाफ़िर मोहब्बत का
जिंदगी का
आख़िरी कलाम लिखूं या
नगमा सुनूं मोहब्बत का
कैसा है अजीब खेल
लकीरों का
मोहब्बत और मौत
आईं हैं हमराह बन कर!
अदिति टंडन
आगरा (उ.प्र)