
जहां पर पति और परिजनों का अपमान हो वहां नहीं जाना चाहिए
इटारसी। श्री द्वारिकाधीश मंदिर में चल रही भागवत कथा में आज पं. सौरभ दुबे ने सृष्टि के विस्तार में मनु सतरूपा के वंश का विस्तार सुनाया।
मुख्य यजमान श्रीमती नीतू हेमंत बडग़ोती ने व्यासपीठ का पूजन किया। पंडित दुबे ने सती चरित्र पर विस्तार देते हुए बताया कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे हैं वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान न हो। यदि ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों हो। सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा।
भगवान शिव के बार-बार मना करने के पश्चात भी सती अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां यज्ञ समारोह में गई और वहां उन्होंने देखा कि उनके पति भगवान शिव का कोई स्थान नहीं है और पिता दक्ष ने भी सती का कोई मान नहीं रखा तब सती ने स्वयं को अग्नि को समर्पित किया। इस कथा में भगवान शिव यही शिक्षा देते हैं कि बिना बुलाए वहां नहीं जाना चाहिए जहां आप का सम्मान ना हो। पं. सौरव दुबे ने ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया।
परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। उन्होंने कहा कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है। पंडित सौरभ दुबे ने अजामिल उपाख्यान के माध्यम से इस बात को विस्तार से समझाया साथ ही प्रह्लाद चरित्र का वर्णन बहुत ही सहज सरल शब्दों में बताया।