जैविक खेती का रकबा बढ़ाने की जरूरत: राज्यपाल

Poonam Soni

पवारखेड़ा कृषि अनुसंधान केन्द्र परिसर में जैविक उन्नत कृषि कार्यक्रम

होशंगाबाद। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल (Governor Anandiben Patel) ने कहा कि जैविक खेती (Organic farming) में मध्यप्रदेश का रकबा बढ़ाया जाना चाहिए। उनको बताया गया है कि यहां 11 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती होती है। उसे आगे ले जाकर 21 लाख और उससे भी आगे ले जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि होशंगाबाद और हरदा जिला जैविक खेती के मामले में आगे बढ़ रहे हैं, यह भविष्य के लिए अच्छी बात है। उन्होंने जिले के किसान मानसिंह गुर्जर से राजभवन में करीब एक पखवाड़ा पूर्व हुई मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा कि किसान ने उनको उनकी हाइट से बड़ी लौकी भेंट की तो उनको खुशी के साथ आश्चर्य भी हुआ, कि यह कैसे उगायी होगी।

राज्यपाल ने कहा कि जैविक कृषि आदानों की आपूर्ति के लिए कृषि विश्वविद्यालय (Agricultural University) आगे आए। किसानों को जैविक आदानो की आपूर्ति की आवश्यकता का संकलन किया जाए। उसके अनुसार आगामी दो-तीन वर्षों में आपूर्ति की व्यवस्था की जाए। पटेल आज पवारखेड़ा में आयोजित जैविक उन्नत कृषि कार्यक्रम में किसानों को संबोधित कर रही थीं। इस अवसर पर मंत्री किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री कमल पटेल (Agriculture Development Minister Kamal Patel), विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा (MLA Dr. Sitasaran Sharma) और जिला पंचायत अध्यक्ष कुशल पटेल (District Panchayat President Kushal Patel) भी मौजूद थे। राज्यपाल ने यहां आए जैविक किसानों से उनके द्वारा जैविक उत्पाद की लगायी प्रदर्शनी देखी और उनसे बात भी की।

राज्यपाल पटेल ने कहा कि रसायनिक खादों के उपयोग से होने वाले उत्पाद स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। उन्होंने कहा कि यदि आंकड़े लिए जाए तो कैंसर से मरने वालों की संख्या किसी अन्य संक्रमण से होने वाली मौतों से अधिक होगी। मंत्री किसान कल्याण एवं कृषि विकास कमल पटेल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाया है। उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर नही, अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर फसल बेचने का अधिकार दिया है। उन्होंने कहा कि अभी तक उत्पादक किसान बहुत थे, मगर खरीददार व्यापारी थोड़े से होने के कारण फसल का सही मूल्य नही मिल पाता था। अब किसान स्वयं अपने उत्पादन को बेचने में सक्षम हो गया है। वह खाद्यान्न उत्पादक संघ बनाकर अधिकतम खुदरा मूल्य प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि स्वामित्व योजना से आजादी के 70 सालों के बाद किसानों को आबादी की जमीन का अधिकार मिल रहा है। अब वह भी अपनी संपत्ति के आधार पर बैंकों से ऋण लेकर अपना व्यवसाय खड़ा कर सकता है। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति पीके बिसेन ने बताया कि पवारखेड़ा कृषि अनुसंधान केन्द्र की स्थापना वर्ष 1903 में हुई है। इस अवधि में केन्द्र द्वारा 53 उन्नत गेहूं की किस्मों का आविष्कार किया है। उन्होंने किसानों से नरवाई नही जलाने की अपील करते हुए कहा कि केन्द्र से बायो डाइजेस्टर प्राप्त कर नरवाई को 15 दिनों में जैविक खाद में बदला जा सकता है।

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