पर्युषण पर्व: आत्मा के सरल परिणाम को मृदुता कहते हैं

पर्युषण पर्व: आत्मा के सरल परिणाम को मृदुता कहते हैं

जैन समाज के पर्युषण के दूसरे दिन के प्रवचन

इटारसी। जैन समाज के पर्यूषण पर्व(Paryushan parv) का आज दूसरा दिन था। इस दिन को उत्तम मार्दव धर्म के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर श्री चैत्यालय में सुबह 8 से 9 बजे तक तीन बत्तीसी जी का पाठ एवं 9 बजे से वृहत मंदिर विधि पं. ओम प्रकाश जैन ने समाज के बीच में संपन्न कराई।
इस अवसर पर प्रवचनों में बताया है कि मृदुभाव आत्मा का स्वभाव है, आत्मा के सरल परिणाम को मृदुता कहते हैं। मार्दव अर्थात मृदुता या कोमलता का भाव होना और मान, मद, अभिमान, अहंकार का अभाव होने को उत्तम मार्दव धर्म कहते हैं। किसी अहंकारी व्यक्ति की तुलना एक नशे में चूर व्यक्ति से की जाती है क्योंकि इस मद के कारण यह जीव सब कुछ भूल जाता है। जैसे नशे में धुत व्यक्ति को कोई समझा नहीं सकता, औरों की तो बात ही क्या उसके सगे-संबंधी जन भी उसे समझाने में असमर्थ हैं, उसी प्रकार अभिमानी व्यक्ति को कोई समझा नहीं सकता। सम्यक् दर्शन को दूषित करने वाले, मलिन करने वाले भावों को मद या अंहकार कहते हैं। अर्हन्त भगवान् जिन 18 दोषों से रहित हैं उनमें एक दोष मद भी है। लोक लाज का ध्यान रखना शिष्टाचार कहा जाता है। लज्जावान होना प्रत्येक मानव प्राणी का कर्तव्य है, ये ही मानवता का कल्याण मार्ग है, इसलिए हमेशा अपने भाव को नरम रखना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है।

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