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गजल : कोई भी शख़्स मुझको नहीं है भला मिला

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ज़ीस्त में मुझको हर एक से ही दगा मिला ,
कोई भी शख़्स मुझको नहीं है भला मिला ।

मैं समझा था कि मेरे सिवा कौन उसका है ,
हर कोई शहर में तो , पता पूछता मिला ।

हँसते हुए बश़र का ज़िगर है बड़ा बहुत ,
सबको हँसाता शख़्स भी ख़ुद गमज़दा मिला।

जिसके लिए लुटाते रहे जान देखिए ,
मेरा वो अपना ही आज दुश्मन से जा मिला ।

मैं सोचता यही था कि वो साथ है मिरे ,
वो पास और के मुझको बैठा हुआ मिला ।

mahesh soni

महेश कुमार सोनी
माखन नगर .

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