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गांधी सभा भवन बनाम कांग्रेस-भाजपा की राजनीतिक मंशा

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रोहित नागे, इटारसी
इन दिनों सोशल मीडिया पर जयस्तंभ चौक पर स्थित गांधी सभा भवन जिसे कांग्रेस भवन बताया जा रहा है, या है। स्थिति स्पष्ट नहीं है, उसकी बड़ी चर्चा है। पुराने कांग्रेसी मोहन झलिया का मानना है कि जब मध्यप्रदेश में संविद सरकार थी तब तत्कालीन मंत्री स्व. धन्नालाल चौधरी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. गोविन्द नारायण सिंह से कांग्रेस के नाम उक्त भूमि आवंटित करायी थी। कालांतर में स्व. हरिप्रसाद चतुर्वेदी ने उक्त भूमि को एक ट्रस्ट बनाकर गांधी सभा भवन ट्रस्ट के नाम से करा ली, तभी से यही स्थिति में है।
इस मामले में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष शिवाकांत पांडेय का दावा है कि उनके पास इसके संपूर्ण दस्तावेज मौजूद हैं। वे कांग्रेस की एक बैठक में यह मांग भी कर चुके हैं कि उक्त भवन कांग्रेस को दिया जाना चाहिए। पूर्व सुधार न्यास अध्यक्ष अरविंद मालवीय का सुझाव है कि पूर्व विधायक पं.अंबिका प्रसाद शुक्ल इसके ट्रस्टी हैं, उनके पास सही जानकारी हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि जब मध्यप्रदेश में मोतीलाल बोरा की सरकार थी, तब पूरे देश में फैली कांग्रेस की संपत्तियों के बारे में जानकारी एकत्र की थी, और गांधी भवन ट्रस्ट को कांग्रेस भवन बनाने के प्रयास हुए थे। उनका तो यह भी कहना है कि चतुर्वेदी परिवार ने संपत्ति कांग्रेस को सांैप दी तो लड़ाई राजनैतिक होगी, नहीं तो संपत्ति भाजपा पोषित भूप्रेमियों के पास चली जाएगी।
इधर गांधी सभा भवन के किरायेदार दुकानदारों को चिंता सताने लगी थी कि यदि जर्जर बताकर भवन तोड़ा गया तो उनकी वर्षों से जमी दुकानदारी का क्या होगा? फिर नये भवन में दुकानें बनी भी तो उनके मिलेगी या नहीं? मिलीं तो क्या इसी साइज की होगी, जितनी अभी है। जाहिर है, नयी दुकानें बनेंगी तो किराया भी हजारों में होगा, जो अभी पिछले अनुबंध के अनुसार चल रहा है, उससे कहीं अधिक किराया देना पड़ेगा। जितने दिन में नया भवन बनकर तैयार होगा, तब तक उनके कारोबार का क्या होगा? इसी चिंता से जनप्रतिनिधियों को अवतग कराया तो विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा ने आगे आकर सभी से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि अधिकारियों से बातचीत की जाएगी। आश्वस्त किया कि अभी भवन नहीं टूटेगा। सांसद ने इससे आगे जाकर इतना तक आश्वस्त कर दिया कि भवन मजबूत है, नहीं टूटेगा। इस भवन के कमजोर होने और नहीं होने के पक्ष में दो विचार बन गये हैं। कांग्रेस भवन मांग रही है, भाजपा दुकानदारों से नहीं तोडऩे का वादा कर रही है तो जाहिर है, राजनीति का प्रवेश तो हो ही गया है। यह राजनीति आगे जाकर और पैनापन लेगी, क्योंकि आज मप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी का एक पत्र वायरल हो गया जिसमें उन्होंने गांधी सभा भवन को कांग्रेस न्यास भवन का नया नाम देकर इसे ध्वस्त न करने के लिए कलेक्टर को पत्र लिख दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने तो यहां तक घोषित कर दिया कि भवन मजबूत है और केवल इसे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए क्षतिग्रस्त और दयनीय घोषित कराया गया है।
इस पत्र पर भाजपा नेता और पूर्व पार्षद यज्ञदत्त गौर ने टिप्पणी भी की है कि जीतू भैया को बताने वाले ने शायद बताया नहीं, या आदत के अनुसार उन्होंने सुना ही नहीं कि यह कांग्रेस न्यास भवन नहीं, गांधी सभा भवन न्यास है और इसका कभी पोस्टर, बैनर जब लगते थे, तब के अलावा कोई राजनैतिक उपयोग नहीं हुआ है।
कभी मुखर कांग्रेस रहे अर्जुन भोला की कांग्रेस के प्रति चिंता अब भी कायम है। उन्होंने सोशल मीडिया की चर्चा में लिखा है कि जिस बात का डर था, वही हो रहा है, जीतू भैया जैसे बड़े लीडर को अधूरी जानकारी के साथ प्रतिक्रिया देना।
व्यापारी और हॉकी खिलाड़ी कन्हैया गुरयानी लिखते हैं कि कुछ भाजपा लगी थी कि हमें मिल जाए, एक इंदौरी नेता जी आ गये कि हमें मिल जाए, अब बताओ किसे मिले सत्ता जिले की। कांग्रेस नेता मुकेश गांधी ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष के पत्र पर टिप्पणी की है कि ऐसा लग रहा है कि सरकार इस भवन को किसी राजनैतिक कारणों से तोड़ रही है, जबकि इसमें कई प्रकार के कानूनी और राजनैतिक दांव-पेंच हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि पहले हर पहलू को जान लें तभी संज्ञान लें और फिर भवन की लड़ाई लड़ें।

मुद्दा…जो कहीं खो सा गया
कुल जमा मप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के कलेक्टर को लिखे पत्र के बाद गांधी सभा भवन का जिन्न बोतल से फिर बाहर आ गया है। यह मुद्दा ठंडा होगा या अभी आग पहले से ज्यादा बढ़ेगी, इसका फैसला तो समय करेगा। इतना तो तय है कि गांधी सभा भवन के इस मु्द्दे के उछलने से गांधी मैदान में लगना तय हो चुके एस्ट्रोटर्फ का मुद्दा फिलहाल गुम सा हो गया है। क्योंकि खेड़ा पर करोड़ों रुपए की लागत से बने खेल स्टेडियम को उतनी सफलता नहीं मिली, उसका रख-रखाव तक नहीं हो पा रहा है तो फिर शहर से बाहर जाकर प्रस्तावित भूमि पर एस्ट्रोटर्फ लगता तो शहर की हॉकी को शायद खत्म ही कर देगा। कम से कम अखिल भारतीय गांधी मेमोरियल टूर्नामेंट तो मर ही जाएगा, इतना तय है, बिना दर्शकों के कोई भी टूर्नामेंट होना मृतप्राय ही होता है।

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