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अधिकारों-कर्तव्यों का संतुलन ही है, धर्म देवी जी व विधायक के सानिध्य में हुई काव्य निशा

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इटारसी। शनिवार की रात वृंदावन गॉर्डन में एक आध्यात्मिक व राष्ट्रप्रेम को समर्पित एक अनूठी काव्य निशा का आयोजन अंतरराष्ट्रीय कथा प्रवक्ता देवी हेमलता शास्त्री व विधायक डॉ सीतासरन शर्मा (MLA Dr. Sitasaran Sharma) के सानिध्य में हुआ जो देर रात तक चला।सूत्रधार व संचालन कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार चंद्रकांत अग्रवाल, ने सभी कवियों का परिचय देते हुए कहा कि देवी जी की इच्छा व आदेश से ही यह काव्य निशा साकार हुई है। देवी हेमलता ने कहा कहा कि कविता लिखने में भी अपने आत्म चिंतन के ध्यान में जाना पड़ता है। डॉ सीतासरन शर्मा ने नेहरू व दिनकर का एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि जब-जब भी राजनीति लडख़ड़ाई है, उसे साहित्य ने ही संभाला है, राह दिखाई है। प्रारंभ में सरस्वती वंदना ममता वाजपेयी ने की। आलोक शुक्ला ने राम को समर्पित करते हुए गीत पढ़ा-
राम नाम है मधुर, राम नाम प्रीत है।

राम नाम गाता चल, राम नाम गीत है।। सुरभि नामदेव ने अपनी कविता पढ़ी। सुधांशु मिश्र ने कहा- आज मैंने हाथों में थामा है एक गुलाब/पंखुडिय़ां शर्मीले गुलाब की/हमारे बीच की दूरी सुरमई है गहराते रंग से सराबोर हैं मेरे हाथ…! रामकिशोर नाविक ने एक सुंदर गीत पढ़ा-ध्यान में हर समय कृष्ण लीला रहे, बांसुरी की तरह चित सुरीला रहे, राधिका भाव में ही नहाते रहें, सांस के छोर तक मन रंगीला रहे। वरिष्ठ दार्शनिक कवि दिनेश द्विवेदी ने पढ़ा-जैसे समा गई थी मीरा/प्रेम के चरम पर/अपने गिरधर गोपाल में/उसी तरह मैं भी समा जाऊंगा/तुम में एक दिन। वरिष्ठ कवि चंद्रकांत अग्रवाल ने कई सुंदर आध्यात्मिक मुक्तक पढ़े। एक वानगी- भीष्म ने शर शैय्या से पांडवों से यह कहा/अधिकारों -कर्तव्यों का संतुलन ही है धर्म। गीता पर केंद्रित अपना एक खूबसूरत गीत भी पढ़ा- जीना सीखो नदियों से उन सा निर्मल/ सहना सीखो पर्वत से उन सा अविचल/ देना सीखो पेड़ों से फल मीठा- मीठा/ लेना सीखो बच्चों से वो जैसा जीता। विनोद कुशवाहा ने पढ़ा-रात का वक्त था, सोया हर शख्स था, आंगन में लेटा था गरीब का बेटा था। दीपाली शर्मा ने गीत पढ़ा- मिले होंगे तुझे

लाखों सूरज विरासत में,
मेरे घर मेरे पसीने का दिया जलता है। प्रमिला किरण ने पढ़ा- बेटी बनने की चाह भूल वो बहू /अब मां का फर्ज निभाने लगी। ममता वाजपेयी ने पढ़ा –
तल्खियाँ दूरियाँ बढ़ाती हैं, थोड़ा मीठा ज़बान में रखना। प्रोफेसर श्रीराम निवारिया ने पढ़ा- नाले और नाली गंदे नहीं हैं/ सिर्फ गंदगी ढोते हैं
व्यक्ति और समाज की गंदगी धोते हैं। आशा पंवार, रोहिणी दुबे, गौरव शर्मा आदि ने भी रचना पाठ किया। इस अवसर पर कई गणमान्य नागरिक व काव्य प्रेमी उपस्थित थे।

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