इटारसी। हिन्दू धर्म में कई त्योहार और व्रत महिलाओं द्वारा किए जाते हैं। शनिवार को ऋषि पंचमी के व्रत रखा गया। इस व्रत का विशेष महत्व बताया जाता है। मान्यता है जो व्यक्ति इस व्रत का श्रद्धा अनुसार पालन करता है उसे सारे दोषों से मुक्ति मिल जाती है। ये व्रत मुख्य तौर से सप्त ऋषियों को समर्पित होता है। सभी महिलाओं ने पंचमी का व्रत कर संतान की प्राप्ति की कामना की। कहा जाता है इस व्रत को करने से धन.धान्य, समृद्धि, संतान प्राप्ति की कामना भी पूरी हो जाती है। जानिए ऋषि पंचमी व्रत की पूजा विधि, मंत्र, कथा, मुहूर्त और महत्व।
ऋषि पंचमी मुहूर्त: पंचमी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर को रात 09.57 बजे से हो जाएगी और इसकी समाप्ति 11 सितंबर को 07.37 पर होगी। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11.03 बजे से शुरू होकर दोपहर 01.32 बजे तक रहेगा। इस साल ये पर्व 11 सितंबर को मनाया जायेगा।
ऋषि पंचमी व्रत कथा: पौराणिक काल में एक राज्य में ब्राह्मण पति पत्नी रहते थे। दोनों ही पति-पत्नी धर्म पालन में अग्रणी थे। उनका एक पुत्र और एक पुत्री थी। बेटी के विवाह योग्य होने पर उन्होंने उसका विवाह एक अच्छे कुल में करा दिया। लेकिन विवाह के कुछ ही समय बाद उनकी बेटी के पति की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के बाद ब्राह्मण की बेटी अपने वैधव्य व्रत का पालन करने के लिए नदी किनारे एक कुटियाँ में रहने लगी। कुछ समय बाद ही विधवा बेटी के शरीर में कीड़े पड़ने लगे। बेटी के कष्ट को देखकर ब्राह्मणी मां रोने लगी और उसने अपने पति से बेटी की इस दशा का कारण पूछा। ब्राह्मण ने अपनी दिव्य शक्ति से अपनी बेटी के पूर्व जन्म को देखा तो उसे ज्ञात हुआ कि पूर्व जन्म में उसकी बेटी ने माहवारी के समय नियमों का पालन नहीं किया। इसी कारण उसकी ये दशा हो रही है। पिता द्वारा बताए जाने के बाद ही ब्राह्मण की पुत्री ने पूरे विधि विधान के साथ ऋषि पंचमी के व्रत का पालन शुरू कर दिया। जिसके पश्चात उसे अगले जन्म में पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति हुई। (यह भी पढ़ें- मकर राशि में शनि और गुरु की युति से बनेगा ‘नीचभंग राजयोग’, जानिए किसे होगा धन लाभ)
ऋषि पंचमी व्रत पूजा महत्व: पुराने वक्त में महिलाओं के लिए माहवारी के समय पूजा-आराधना के कई नियम बताए गए थे और ऐसा कहा जाता था कि जो इन नियमों का पालन नहीं करेगा उन्हें दोष लगेगा। इस दोष के निवारण के लिए ही महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं। माना जाता है जो महिला इस व्रत का पालन करती है उसे न केवल दोषों से मुक्ति मिलती है बल्कि उन्हें संतान प्राप्ति और सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
ऋषि पंचमी उद्यापन विधि: माना जाता है कि अगर ये व्रत एक बार शुरू कर दिया जाए तो इसे हर वर्ष करना आवश्यक हो जाता है। फिर वृद्धावस्था में ही इस व्रत का उद्यापन किया जा सकता है। इस व्रत के उद्यापन के लिए ब्राहमण भोज करवाया जाता हैं। भोज के लिए सात ब्रह्मणों को सप्त ऋषि का रूप मानकर उन्हें वस्त्र, अन्न, दान, दक्षिणा दी जाती है।