* राजधानी से पंकज पटेरिया :
यह विडंबना ही कहीं जाएगी जब किडनी पूरी तरह फेल हो जाते हैं तो डायलिसिस शुरू होता है। हमारे यहां क्षेत्र में यही प्रोसेस है अब डायलिसिस तो गारंटी है नहीं। इधर यह जिक्र व्यवस्था पर चल रहा है। हमारी राजधानी में यही मंजर नमोदार हुआ है। क्राइम हो, हेल्थ हो, नशाखोरी हो, पानी गले तक आ जाता है और डूबने की नौबत आ जाती है तो चीख चिल्ला मचती है। प्रेस फायरिंग करता प्रशासन के कानों में तब भी सुनाई नहीं देता और फिर एक बार टाइगर को एक ललकार भरना पड़ती है। दहाड़ भरनी पड़ती है सब ठीक-ठाक और पटरी पर आ जाता है।
सड़कों पर लागू होती है। सड़के किसी शहर की धामनिया होती हैं शिराएं होती हैं। जिनसे शहर की सेहत शक्ल सूरत समझ में आती है कि तंदुरुस्त है, तरोताजा है, या खस्ताहाल। माना की अति बारिश जैसे या कोई घटना की वजह से सड़कों की शक्ल सूरत बिगड़ जाती है लेकिन इसके बाद जवाबदारी भी जवाबदरो की होती है कि वे इन्हें दुरुस्त करें। लेकिन मामला आपसी खींचतान में चलता रहता है जब तलक प्रेस मीडिया गोलंदा जी शुरू नहीं करते। तब तक मौसेरे भाई होने के कारण सब चुप रहते हैं। तभी सिंह गर्जना होती है और अल्टीमेटम दिया जाता है तो सब के बोल फूटने लगते हैं और यह आशवस्ती दी जाती है. की टेंडर हो गए हैं बस काम शुरू होने वाला है। लेकिन कुछ नहीं होता। सुबे की राजधानी के मामले में यही देखने को मिला।
अंततः टाइगर दहाड़े और उन्होंने अल्टीमेटम दिया कि 15 दिन में यदि सड़कों को सुधारने का काम शुरू नहीं किया गया तो समझ लीजिए। उम्मीद की जानी चाहिए टाइगर की दहाड़ से अपनी मनमर्जी के लोगों का जंगल दहलेगा और राजधानी की सड़कों के दिन बुहरेंगे।
ऐसी आकांक्षा के साथ नर्मदे हर।
पंकज पटेरिया
पत्रकार, साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
भोपाल
9340244352 ,9407505651