इटारसी। लॉकडाउन के पहले दिन से शहर का बस स्टैंड इन दिनों पूरी तरह खाली पड़ा हुआ है, दरअसल लॉकडाउन में खड़ी बसों का टैक्स माफ करने जैसी कुछ अन्य मांगें सरकार नहीं मान रही है, तो बस ऑपरेटर्स(Bus operators) प्रतिबंध हटने के बावजूद बसों को रोड पर नहीं ला रहे हैं। नतीजा यह है कि देशव्यापी लॉकडाउन के बाद से ही बसों का संचालन पूरी तरह ठप्प है।
बस मालिक लॉकडाउन के समय का टैक्स माफ़ करने की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं। बस हड़ताल का खामियाजा आम जनता(janta), ड्राइवर(Driver), कंडक्टर(conductor) को उठाना पड़ रहा है। गौरतलब है कि मप्र सरकार ने 3 जुलाई को प्रदेश में बसों के संचालन शुरू करने के आदेश जारी कर दिए हैं। लेकिन बस मालिक टैक्स माफी, किराया बढ़तरी समेत अन्य मांगों पर अड़े हुए हैं।
आदिवासी बहुल्य क्षेत्रों पर पड़ा असर
बसों का संचालन बंद होने के कारण सबसे ज्यादा असर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों पर देखने को मिल रहा है। केसला, सुखतवा समेत आयुध निर्माणी के आसपास के आदिवासी रोजी-रोटी की तलाश में शहर आते हैं। लेकिन बसों के बंद हो जाने से उनका शहर आना भी बंद हो गया है। ऐसे में ग्रामीणों के सामने शहर आने के लिए एक मात्र ऑटो का साधन बचा हुआ है। लेकिन बस की अपेक्षा ऑटो का किराया बहुत अधिक है। ऐसे में ग्रामीणों को जरूरी सामान खरीदने के लिए अधिक मूल्य चुकाकर प्राइवेट वाहन करने पड़ रहे हैं। वहीं बाजार से घर लौटने के लिए भी घंटों इतंजार करना पड़ता है। ऐसे में सरकार या बस संचालकों की तरफ से जनहित में कोई पहल होते नहीं दिख रही है।
इनका कहना है …!
हम बस के जरिए उनके गांव से 30 रुपये में आना- जाना कर लेते थे, लेकिन अब शहर आने में 100 रुपये तक खर्च हो जाते हैं। बस बंद होने के कारण शहर में काम करने नहीं पहुंच पाती। जिससे उनके सामने आर्थिक तंगी की स्थिती बनी हुई है।
मनीषा उइके, ग्रामीण नागपुरकलॉ