गीत: बुरा नहीं है
जब चौराहे पर आकर मन
कई पंथों में सुलझ ना पाये
आंखों से ओझल होने पर
मंजिल का पथ देख ना पाये
चलते – चलते क्षण भर को तब
रुक जाना बुरा नहीं है !
जब युग-धारा बहते-बहते
रूढ़ि – गर्त में ही गड़ जाए
युग- मानव आवर्तों में ही
चक्कर खा – खा कर अड़ जाये
युग-धारा को पीछे रख
तब बढ़ जाना भी बुरा नहीं है !
जब अन्यायी के शासन को
पशु होकर सब सहते जायें
अधिकारों से गाफिल होकर
मनुहारों में बहते जायें
ज्वालामुखी हृदय में भर
तब उठ जाना भी बुरा नहीं है !
जब विद्या के सम्मुख आकर
मूढ़ अविद्या गाल बजाये
ज्ञानी की चुप्पी को लेकर
बकवास की ढाल बताये
विद्या का बल बतलाने तब
कह देना भी बुरा नहीं है !
जब वादों के विपुल भार से
ज्ञान स्वयं आहत हो जाये
तर्कों के अनगिन पंथों पर
सत्य स्वयं श्रीहत हो जाये
शाश्वत चिंतन को गढ़ने तब
चुप हो जाना भी बुरा नहीं है !
– विपिन जोशी/ ‘ साधना के स्वर ‘ से साभार /