झरोखा : कहीं ना कहीं कोई ना कोई होता है…
: पंकज पटेरिया –
परीक्षा का दौर चल रहा था। सभी छात्र छात्राएं हाल में बैठ चुके थे। राजकीय महाविद्यालय शिवपुरी (एमपी) मेरे अग्रज प्रख्यात साहित्यकार हिंदी विभाग के अध्यक्ष डा परशुराम विरही ने पेपर वितरित कर पर्चा शुरू करने का आग्रह कर घंटी बजवा दी। सभी छात्र छात्राएं पेपर करने लगे। करीब पंद्रह मिनट बाद सबका का ध्यान अन्यास एक छात्रा की ओर गया। यह वह छात्रा पेपर कापी फेंक खड़े ही गई और जोर जोर अपने स्थान पर गोल गोल घूमने लगी। पियून ने भाग कर परीक्षा अध्यक्ष डॉ साहब विरही को ख़बर कर दी। विरही जी ने आकर छात्रा को देखा, वे भी हैरान रह गए। उन्होंने उस लड़की के पेरेंट्स को वस्तुस्थिति बता तुरंत कालेज आने का कहा। डाक्टर साहब का सभी बड़ा सम्मान करते है। लिहाजा जैन समाज की इस बेटी के मामा फौरन कालेज आ गये। लडकी को देख उन्होंने जेब से एक पुड़िया निकली और पानी में घोल उसे पिलाई।आश्चर्य कुछ ही पलों में ठीक हो गई। फिर से वह पेपर करने लगी। यह उसने जरूर पूछा मुझे हॉल से लाकर प्रिंसिपल रूम में क्यो बैठाया?
खेर उसे बहला दिया गया। विरही जी को उनके मामा ने बताया सर यह मेरी भांजी है। पढने आई है, इसके मां पिता ने यह भस्म कभी ऐसे हालत बनने पर इसे देने का कहा था, बस सर यही दवा है। जब तब ऐसी स्थिति बनने पर दे देते, यह ठीक हो जाती। कोई कहता भूत प्रेत का साया है कोई कहता कुछ और है। पर मेरे लिए यह नया अनुभव था।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
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