संतान की कुशलता, उन्नति और दीर्घायु के लिए माताएं करेंगी संतान सप्तमी का व्रत

Post by: Poonam Soni

होशंगाबाद। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन संतान सप्तमी (Santana Saptami Vrat pooja) का व्रत किया जाता है। इस बार संतान सप्तमी व्रत 13 सितंबर दिन सोमवार को है। पंडित शुभम दुबे ने बताया कि यह व्रत माताएं अपनी संतान की कुशलता और उन्नति दीर्घायु के लिए करती हैं। इसे मुक्ता भरण संतान सप्तमी भी कहते हैं। व्रत वाले दिन भगवान शिव और मां गौरी की अराधना की जाती हैं शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की भी प्राप्ति भी होती है। और संतान की कुशलता और उन्नति दीर्घायु सुख शांति समृद्धि के लिए भी इस व्रत का काफी महत्व होता है। संतान सप्तमी के दिन माताएं सुबह स्नान कर भगवान शिव और मां पार्वती के समक्ष व्रत करने का संकल्प लें। शुद्धता के साथ पूजन का प्रसाद तैयार कर लें। इसके लिए खीर.पूरी व गुड़ के 7 पुए या फिर 7 मीठी पूरी भोग के लिए बनाना उत्तम माना गया है।

संतान सप्तमी व्रत महत्त्व
संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) विशेष रुप से संतान प्राप्ति, संतान रक्षा और संतान की उन्नति के लिए किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों के लिए। कल्याणकारी है परन्तु पुरुषों को भी समान रूप से कल्याण दायक है। सन्तान सुख देने वाला पापों का नाश करने वाला यह उत्तम व्रत है जिसे स्वयं भी करें और दूसरों से भी कराना चाहिए। नियम पूर्वक जो कोई इस व्रत को करता है और भगवान शंकर एवं पार्वती की सच्चे मन से आराधना करता है निश्चय ही अमरपद पैदा करके अन्त में शिवलोक को जाता है।

संतान सप्तमी व्रत विधि, विधान व् नियम
यह सुनकर ऋषि बोले- हे देवकी! यह पुनीत उपवास भादों के महीने में शुक्लपक्ष की दशमी के दिन किया जाता है। उस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी नदी अथवा कुऐ के पवित्र जल में स्नान करके निर्मल वस्त्र पहिनने चाहिए। श्री शंकर भगवान तथा जगदम्बा पार्वतीजी की मूर्ति की स्थापना करें। इन प्रतिमाओं के सम्मुख सोने, चांदी के तारों का अथवा रेशम का एक गंडा बनावें उस गंडे में सात गाठें लगानी चाहिए इस गंडे को धूप, दीप अष्ठ गन्ध से पूजा करके अपने में बांधे और भगवान शंकर से अपनी कामना सफल होने की प्रार्थना करें। तदन्तर सात पुआ बनाकर भगवान का भोग लगावें और सात ही पुत्रे एवं यथा शक्ति सोने अथवा चांदी की अंगूठी बनवाकर इन सबको एक तांबे के पात्र में रख कर और उनका शोडषोचार विधि से पूजन करके किसी सदाचारी, धर्मनिष्ठ, सत्पात्रा ब्राह्मण को दान देवे। उसके पश्चात सात पुआ स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। इस प्रकार इस व्रत का पारायण करना चाहिए। प्रतिमाल की शुक्लपक्ष की सप्तमी के. दिन, हे देवकी! इस व्रत को इस प्रकार नियम पूर्वक से समस्त पाप नष्ट होते हैं और भाग्यशाली संतान उत्पन्न होती है तथा अन्त में शिवलोक की प्राप्ति होती है। हे देवकी! मैंने तुमको सन्तान सप्तमी का व्रत सम्पूर्ण विधान विस्तार सहित वर्णन किया है। उसको अब तुम नियम पूर्वक करो, जिससे तुमको उत्तम सन्तान पैदा होगी। इतनी कथा कहकर भगवान आनन्दकन्द श्रीकृष्ण ने धर्मावतार युधिष्ठिर से कहा कि श्री लोमष ऋषि इस प्रकार हमारी माता को शिक्षा देकर चले गए। ऋषि के कथनानुसार हमारी माता देवकी ने इस व्रत को नियमानुसार किया जिसके प्रभाव से हम उत्पन्न हुए। यह व्रत विशेष रूप से स्थियों के लिए कल्याणकारी है परन्तु पुरुषों को भी समान रूप से कल्याण दायक है। सन्तान सुख देने वाला पापों का नाश करने वाला यह उत्तम व्रत है जिसे स्वयं भी करे और दूसरों से भी करावें। नियम पूर्वक जो कोई इस व्रत को करता है और भगवान शंकर एवं पार्वती की सच्चे मन से आराधना करता है निश्चय ही अमरपद करके अन्त में शिवलोक को जाता है।

 

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