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Sawan Pradosh Vrat 2023 : सावन माह का प्रदोष व्रत होता हैं खास जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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सावन प्रदोष व्रत (Sawan Pradosh Vrat 2023)

Sawan Pradosh Vrat 2023 : हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता हैं। प्रत्येक माह में दो बार प्रदोष व्रत आते हैं। लेकिन इस सावन में आने वाले प्रदोष व्रत (Sawan Pradosh Vrat 2023) बहुत ही खास माना जा रहा है क्‍योंकि इस बार अधिक मास होने से सावन दो महीने का है। इसलिए सावन में 04 प्रदोष व्रत किए जाएगें।

प्रदोष व्रत की खास बात यह होती है कि यें सप्ताह के दिन के नाम के अनुसार जाने जाते है यानि इस माह 30 जुलाई 2023 दिन रविवार को सावन प्रदोष व्रत किया जाएगा। तो इस प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष व्रत कहा जाएगा। सावन प्रदोष व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

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प्रदोष व्रत 2023 शुभ मुहूर्त (Sawan Pradosh Vrat 2023 Shubh Muhurta)

  • प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त प्रारंभ : 30 जुलाई 2023 दिन रविवार को सुबह 10 : 34 पर
  • प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त समापन : 31 जुलाई 2023 दिन सोमवार को सुबह 07 : 26 मिन
  • शिव पूजा समय : 30 जुलाई को शाम 07 बजकर 14 से रात 09 बजकर 19 तक।

सावन प्रदोष व्रत का महत्व (Importance Of Adhik Maas Pradosh Vrat)

हिंदू धर्म में सावन प्रदोष व्रत (Sawan Pradosh Vrat 2023) का अधिक महत्व होता हैं। मान्‍यताओं के अनुसार, हैं इस दिन जो भी भक्‍त पूर्ण श्रृद्धा भाव से व्रत रखते है भगवान शिव उन भक्‍तों के सभी कष्‍ट हर लेते है। और घर में सुख-शांति बनी रहती हैं। इस व्रत को रखने से संतान प्राप्ति की इच्छा जल्द पूरी होती हैं। ये व्रत बच्चों के स्वास्थ्य के लिए भी रखा जाता हैं।

प्रदोष व्रत पूजा सामग्री (Pradosh Vrat Puja Samagri)

Sawan Pradosh Vrat 2023 के दिन भगवान शिव जी का इन सामग्री से करें अभिषेक।

दूध, दही, घी, शहद, गंगा जल, पुष्प,पंच फल पंच मेवा, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम के पत्‍ते, तुलसी, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, भगवान शिव और माता पार्वती की श्रृंगार आदि।

सावन प्रदोष व्रत की पूजा विधि (Sawan Pradosh Vrat Puja vidhi)

  • सावन प्रदोष व्रत (Sawan Pradosh Vrat 2023) के दिन प्रात: जल्‍दी उठकर स्नानादि से निवृत्‍य हाेकर स्वच्छ वस्‍त्र पहन कर भगवान सूर्य को जल अर्पण करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
  • प्रदोष व्रत की मुख्‍य पूजा शाम को होती हैं।
  • शाम से समय मंदिर जाकर सबसे पहले गंगाजल और गाय के दूध से शिव जी का अभिषेक करना चाहिए, फिर उनको अक्षत्, बेलपत्र, सफेद चंदन, भांग, धतूरा, भस्म, शहद, शक्कर, सफेद फूल, फल आदि ओम नम: शिवाय मंत्र जाप के साथ अर्पित करना चाहिए।
  • इसके बाद भगवान शिव को धूप, आदि अर्पित करें।
  • इसके बाद व्रत कथा पढ़े या सुनें और अत: मे भवगान शिव की आरती करना चाहिए।

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सावन प्रदोष व्रत कथा (Sawan Pradosh Vrat Katha)

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार एक गॉव में एक विधवा महिला अपने बेटे के साथ रहती थी। वह भिक्षा मांगने जाती और शाम के समय तक अपने घर लौटती थी इसे से वह स्वयं और अपने पुत्र का जीवन यापना करती थी। एक दिन जब वह लेकर वापस लौट रही थी तभी उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक मिला जो घायल अवस्था में था।

ब्राह्मणी ने उस बच्‍चे को अपने घर ले आई वह बच्‍चा विदर्भ का राजकुमार था। उस बच्‍चे का नाम धर्मगुप्त था उस बच्‍चे के पिता जो विदर्भ देश के राजा थे उन्‍हे दुश्मनों ने युद्ध में मार दिया था और राज्य को अपने बश मे कर लिया था। बालक की हालत देखकर ब्राह्मणी ने उसे अपने पुत्र के समान ही उसका पालन-पोषण करने लगी।

कई दिन बीत जाने के बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई। जहां उसकी मुलाकात एक ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी। ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत के बारे में बताया।

और बेटों के खुशीहाल जीवन के लिए प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता हैं।

कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन जा रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी। वहां अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया।

कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शिव ने सपने में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए कन्या के पिता को जब ये पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार हैं। तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया।

राजकुमार धर्मगुप्त की जिंदगी वापस बदलने लगी उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया और राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को राजा बनाया।

ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जिस तरह राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के का जीवन खुशहाल हो गया वैसे ही सभी पर शिव जी की कृपा प्राप्त होती हैं। इसलिए,प्रदोष व्रत के दिन ये कथा जरूर पढ़नी और सुननी चाहिए।

नोट : इस पोस्‍ट मे दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्‍यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं। narmadanchal.com विश्वसनीयता की पुष्‍टी नहीं करता हैं। किसी भी जानकारी और मान्‍यताओं को मानने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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