मंजर इन दिनों : भीगते सीलते शहर की व्यथा कौन कहे

Post by: Manju Thakur

राजधानी से : पंकज पटेरिया
अपनी ग़ज़ल की पंक्ति, भीगते सीलते शहर की व्यथा कौन कहे, साफ सुथरे हो जाए, खपा कौन कहे। खास लोगो की महफिल में आम मोहल्लों की कथा कैसे कौन कहे। बरबस याद आ जाती है। 2 दिनों से लगातार हो रही इस बरसात में। चुनावी माहौल के बड़े-बड़े मंसूबे हैं, ख्वाब हैं, ख्वाहिशें हैं लेकिन झमाझम बरसात ने गांव, शहर, देहतो, मानसून के पूर्व ढोल बजाकर, गाल बजाकर किए गए, तमाम प्रबंध की पोल खोल कर रख दी है। सब जगह एक से तरबतर मंजर है। चाहे नर्मदापुरम हो, महानगर अथवा हरदा, बैतूल, इटारसी की दास्तान, भीगी सिली सिसकती हुई। सलीके से साफ सफाई नहीं होने से, नाले औकात छोड़ सड़कों पर बह रहे हैं। कहीं सड़कों की खुदाई दुखदाई बन गई। कहीं नवनिर्मित सड़क अपने साथ हुए ऊपरी लीपापोती और मेकअप के हालात बयान कर रही हैं। नतीजतन तीमारदारों के सलुको की पारदर्शिता प्रकट होने लगी। ऐसे में पंचायती चुनाव की व्यवस्था, जद्दोजहद और आगे मानसून के आगमन से व्यवस्था तो डिस्को करने ही लगेगी। लिहाजा हमें ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए कुशलता से चुनाव संपन्न हो।बारिश भी जरूरी है। ग्लोबिंग वार्मिंग दृष्टिगत रखते हुए क्योंकि हम भी दोषी है वार्मिंग के लिए। क्या हम जवाबदार नहीं हैं पर्यावरण बिगाड़ने के लिए, प्रदूषण करने के लिए। पानी वाले ये दिन आगे राहत भरे बीते, आफत भरे नहीं।
इसी दुआ के साथ नर्मदे हर।

PATERIYA JI
पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार, भोपाल
9340244352 ,9407505651

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