साहित्य: शब्द और सत्य…

साहित्य: शब्द और सत्य…

बांचा तो जाऊंगा
पता नहीं कब, कौन, किस तरह बांचेगा
यह उसके मन की बात है
मुझे जो महसूस होता है
वह लिखता जाऊंगा, लिखता जाऊंगा
सत्य का एहसास
शब्द तो बनते रहते हैं, चलते रहते हैं
पर उनका अर्थ भी बदलता रहता है
समय के साथ
स्थान के साथ और
वातावरण के साथ
इसीलिए शब्द का प्रयोग
स्थान वातावरण और समय के साथ ही सत्य है।
एक ही अर्थ सत्य नहीं है
शब्द को समझने के लिए
पूरी तरह सजग और सावधान
रहने की जरूरत है।

सत्येंद्र सिंह (Satyendra Singh)
पुणे, महाराष्ट्र

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