मप्र के उज्जैन में श्री कृष्ण और बलराम ने सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण की

इटारसी। ठाकुर श्री द्वारिकाधीश बड़ा मंदिर तुलसी चौक परिसर मेंं श्रीमद् भागवत कथा के दौरान छठवें दिन मध्य प्रदेश तैलिक साहू समाज के पूर्व अध्यक्ष रमेश के साहू, इनरव्हील क्लब की अध्यक्ष सविता साहू और सदस्यों ने आचार्य पं. सुमितानंद का शॉल-श्रीफल एवं अभिनंदन पत्र से सम्मान किया। नगर पालिका अध्यक्ष पंकज चौरे ने भी आचार्य सुमितानंद का स्वागत किया एवं श्रीमद्भागवत की पूजा की। उनके साथ सौरभ मेहरा भी थे। इनके अलावा राष्ट्रीय बजरंग दल के जगवीर सिंह राजवंशी और उनके साथियों ने भी आचार्यश्री का स्वागत किया।

इस अवसर पर श्री साहू ने कहा कि आचार्य सुमितानंद ने समाज की धार्मिक भावना जागृत करने में जो सहयोग किया है उसे सदैव याद किया जाएगा। आचार्य सुमितानंद ने श्रीमद् भागवत कथा के प्रसंगों में गोवर्धन धारण लीला एवं रासलीला, भगवान का मथुरा गमन कंस का वध, उज्जैन आकर सांदीपनि मुनि के आश्रम में भगवान का शिक्षा लेना एवं जरासंध को युद्ध में 17 बार पराजित करना एवं 18 वीं बार के युद्ध में भगवान का रणछोड़ कर भाग जाना एवं द्वारका पुरी का निर्माण करना, 25 वर्ष की अवस्था में द्वारकाधीश बनकर सुशोभित होना एवं राजा भीष्मक की पुत्री रुकमणी से मंगल विवाह करने की कथा सुनायी।

यजमान निर्मला गौरी शंकर सोनिया एवं राजेश अनिता सोनिया ने आचार्य श्री का पुष्पा हार से स्वागत किया। आचार्य ने कथा में कहा कि मथुरा में कंस का आतंक बहुत बढ़ गया था।, भांजे कृष्ण को मरवाने कई जतन किए, लेकिन सफल नहीं हुए। जब दुष्टों का आतंक बढ़ता है, प्रजा दुखी होकर ईश्वर को याद करती है, तब ईश्वर उसकी रक्षा करने आते हैं। भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध कर मथुरा वासियों को कंस के आतंक से मुक्ति दिलाई।

आचार्य ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ उज्जैन के सांदीपनि आश्रम आए और यहां पर इन्होंने शिक्षा ग्रहण की। भगवान श्री कृष्ण ने जरासंध को 17 बार युद्ध में हराया और योजना के तहत 18 वीं बार में युद्ध से पलायन कर रणछोड़ दास कहलाए। भगवान ने द्वारिका में प्रवेश किया और 25 वर्ष की आयु में ही द्वारिकाधीश बने एवं रुक्मणी के साथ उन्होंने मंगल विवाह किया। रविवार को कथा का विश्राम दिवस होगा।

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AUTHORRohit

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