इटारसी। नई गरीबी लाइन में पिछले एक सप्ताह से चल रही श्रीमद् भागवत कथा का समापन सुदामा चरित्र की कथा के साथ हो गया। श्रीमद भागवत कथा पुराण यज्ञ के अंतिम दिन सुदाम चरित्र की कथा का वर्णन किया गया। इसमें भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती ने दुनिया को यह संदेश दिया कि राजा हो या रंक दोस्ती में सब बराबर होते हैं। कथा के अंतिम दिन मालवा माटी के संत उज्जैन के कथा वाचक पं. उपेन्द्र व्यास ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। समापन अवसर पर यजमान कैलाश रैकवार और परिवार ने पं. व्यास का सम्मान किया।
श्रीमद् भागवत कथा केअंतिम दिन पंडित व्यास ने कहा कि कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां है। द्वारपाल के मुख से पूछत दीनदयाल के धाम, बतावत आपन नाम सुदामा सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने राजमहल के द्वार पर पहुंच गए। यह सब देख वहां लोग यह समझ ही नहीं पाए कि आखिर सुदामा में ऐसा क्या है जो भगवान दौड़े-दौड़े चले आए। बचपन के मित्र को गले लगाकर भगवान श्रीकृष्ण उन्हें राजमहल के अंदर ले गए और अपने सिंहासन पर बैठाकर स्वयं अपने हाथों से उनके पांव पखारे। कहा कि सुदामा से भगवान ने मित्रता का धर्म निभाया और दुनिया के सामने यह संदेश दिया कि जिसके पास प्रेम धन है, वह निर्धन नहीं हो सकता। राजा हो या रंक मित्रता में सभी समान हैं और इसमें कोई भेदभाव नहीं होता। कथावाचक ने सुदामा चरित्र का भावपूर्ण सरल शब्दों में वर्णन किया कि उपस्थित लोग भाव विभोर हो गए।
उन्होंने कहा कि विपरीत परिस्थिति में भी सुदामा ने भक्ति नहीं छोड़ी, हमें ऐसे भक्त बनना चाहिए। सुदामा और श्रीकृष्ण के जैसे मित्रता निभाना चाहिए। भगवान परीक्षा लेते हैं, लेकिन अपने भक्त को संकट से भी उबार लेते हैं। दीन-दुखियों के नाथ होने से उनको दीनानाथ कहा जाता है।