शुक्र प्रदोष व्रत 2022 : जानें शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा सामग्री, पूजा विधि, व्रत कथा, रवि योग सम्पूर्ण जानकारी 2022
शुक्र प्रदोष व्रत 2022 (Shukra Pradosh Vrat 2022)
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है। प्रत्येक महीने मे कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता हैं। प्रदोष व्रत हर माह में दो बार आते है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। ऐसे साल में कुल 24 प्रदोष व्रत आते हैं।
प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। हर प्रदोष व्रत का नाम सप्ताह के दिन के अनुसार होता हैं। शुक्रवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त नियम से प्रत्येक प्रदोष का व्रत पूर्ण करता हैं। उसके सभी कष्टों का नाश होता हैं।
शुक्र प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त (Shukra Pradosh Vrat Auspicious Time)
शुक्र प्रदोष व्रत 07 अक्टूबर,2022 दिन शुक्रवार को रखा जाएगा। | |
| शुक्र प्रदोष व्रत तिथि का प्रारंभ | 07 अक्टूबर,2022 दिन शुक्रवार सुबह 07:26 बजे से |
| शुक्र प्रदोष व्रत तिथि का समापन | 08 अक्टूबर,2022 दिन शनिवार सुबह 05:24 बजे तक। |
इस दिन बन रहा है रवि योग (Ravi Yoga is Being Made on This Day)

शुक्र प्रदोष व्रत के दिन ही पूजा के समय रवि योग बन रहा है रवि योग शाम को 06:17 मिनट से दूसरे दिन 08 अक्टूबर को सुबह 06 : 18 मिनट तक है।
शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व (Significance of Shukra Pradosh Vrat)
शुक्र प्रदोष व्रत को विधि-विधान से रखकर भगवान शिव की आराधना करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है। इस व्रत को नियम से करने से सभी कष्टो से मुक्ति मिल जाती हैं और सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति की इच्छा जल्द पूरी होती हैं ये व्रत बच्चों के स्वास्थ्य के लिए भी रखा जाता हैं।
शुक्र प्रदोष व्रत पूजा सामग्री (Shukra Pradosh Vrat Puja Material)

पुष्प, पंच फल पंच मेवा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, दूध, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, भगवान शिव और माता पार्वती की श्रृंगार आदि।
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शुक्र प्रदोष व्रत की पूजा विधि (Worship method of Shukra Pradosh Vrat)

- शुक्र प्रदोष व्रत के दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नानादि करके भगवान सूर्य को नमस्कार कर जल अर्पण करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- इसके बाद साफ स्वच्छ कपड़े पहन कर अपने घर के पूजा स्थल पर घी का दिया जला कर भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।
- शाम से समय मंदिर जाकर सबसे पहले गंगाजल और गाय के दूध से शिव जी का अभिषेक करकें उनको अक्षत्, बेलपत्र, सफेद चंदन, भांग, धतूरा, भस्म, शहद, शक्कर, सफेद फूल, फल आदि ओम नम: शिवाय मंत्र जाप के साथ अर्पित करना चाहिए।
- इसके बाद भगवान शिव को धूप, दीप, गंधा आदि अर्पित करें व्रत कथा का पाठ करे भगवान शिव की आरती करें।
शुक्र प्रदोष व्रत कथा (Shukra Pradosh Fasting Story)

पौराणिक कथा के अनुसार एक गॉव में एक विधवा महिला अपने बेटे के साथ रहती थी। वह भिक्षा मांगने जाती और शाम के समय तक अपने घर लौटती थी। यही करकें वह स्वयं और अपने पुत्र का जीवन यापना करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तभी उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बच्चे को देखा वह घायल अवस्था में था।
ब्राह्मणी ने उस बच्चे को अपने घर ले आई वह बच्चा विदर्भ का राजकुमार था। उस बच्चे का नाम धर्मगुप्त था उस बच्चे के पिता जो विदर्भ देश के राजा थे उन्हे दुश्मनों ने युद्ध में मार दिया था और राज्य को अपने वश मे कर लिया था। बच्चे की हालत देखकर ब्राह्मणी ने उसे अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण करने लगी।
कई दिन बीत जाने के बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई। जहां उसकी मुलाकात एक ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी। ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत के बारे में बताया।
और बेटों के खुशीहाल जीवन के लिए प्रदोष व्रत करने को कहां और उससे जुड़े पूरे विधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता हैं।
कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन जा रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी। वहां अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया।
कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शिव ने सपने में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए कन्या के पिता को जब ये पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार हैं। तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया।
राजकुमार धर्मगुप्त की जिंदगी वापस बदलने लगी उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया और राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को राजा बनाया।
ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जिस तरह राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के का जीवन खुशहाल हो गया वैसे ही सभी पर भगवान शिव कृपा प्राप्त होती हैं। प्रदोष व्रत के दिन ये कथा अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए।
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