रोहित नागे
विरोध का जो दौर इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में चल रहा है, वैसा करीब दो दशक पहले कांग्रेस में चलता था। हालांकि भाजपा कार्यकर्ता कांग्रेस से दो कदम आगे निकल चुके हैं। अभी तो किसी की भी टिकट पक्की नहीं हुई है, और विरोध, शिकवा, शिकायत, षड्यंत्र का दौर प्रारंभ हो गया है। नर्मदापुरम जिले के हर विधानसभा क्षेत्र में कमोवेश विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं। कुछ क्षेत्र के नेता तो आलाकमान से मिलकर अपनी आपत्ति भी दर्ज करा आये हैं। नर्मदापुरम विधानसभा में विरोध के स्वर जरा ऊंचे हैं। नर्मदा अस्पताल के संचालक राजेश शर्मा यहां अपने लिए टिकट की दावेदारी जोरशोर से कर रहे हैं। उनका जनसंपर्क भी काफी पहले शुरु हो गया है। हालांकि अभी आलाकमान से ऐसे कोई संकेत तक नहीं मिले हैं कि वर्तमान विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा का टिकट पक्का है या फिर नहीं, कई नेता भोपाल जाकर उनके विरोध में अपनी बात रख आये हैं। विधायक की ओर से पूरी तरह से चुप्पी है। वे वेट एंड वाच की स्थिति में हैं।
संझले भैया का पेंच बिगाड़ेगा समीकरण
पूर्व विधायक पं.गिरिजाशंकर शर्मा संझले भैया का पेंच भाजपा का और कांग्रेस का दोनों का समीकरण बिगाड़ सकता है। यदि उनको कांग्रेस से टिकट मिली तो वर्तमान में जो विधानसभा की टिकट के दावेदार हैं, उनका समीकरण बिगड़ जाएगा और भाजपा से वर्तमान विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा के लिए मुश्किलें हो जाएंगी। हालांकि इसकी संभावना नगण्य है कि दोनों भाई एकदूसरे के सामने होंगे। गिरिजशंकर शर्मा अगले हफ्ते कांग्रेस ज्वाइन कर सकते हैं, ऐसे पक्के संकेत हैं। उन्होंने खुद इसे स्वीकार कर लिया है। हालांकि नर्मदापुरम विधानसभा से टिकट पर वे भी असहज हैं, और अपने भाई वर्तमान विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा की भाजपा से टिकट का इंतजार कर रहे हैं, यदि डॉ. शर्मा भाजपा से आते हैं तो वे सोहागपुर जाना पसंद करेंगे। यदि डॉ. शर्मा को टिकट नहीं मिली तो नर्मदापुरम से ही चुनाव लडऩे को प्राथमिकता देंगे। हालांकि डॉ. शर्मा की टिकट पक्की है, ऐसा उनके समर्थक मानकर चल रहे हैं और डॉ. शर्मा की तैयारी भी ऐसा ही संकेत दे रही है कि आलाकमान से उनको क्षेत्र में काम करने को कहा गया है।
अब देखना है कि आगामी दिनों में दोनों ही दलों की राजनीति में कितना घमासान होता है, या फिर टिकट घोषित होने के बाद विरोध अपने आप शांत हो जाएगा, क्योंकि लोकतंत्र में अपने लिए टिकट मांगना सबका अधिकार होता है, टिकट घोषणा के बाद सबको पार्टी प्रत्याशी के लिए काम करना होता है। हालांकि भितरघात की संभावना 90 फीसद से अधिक होती है। बहरहाल, हमें भी वेट एंड वाच मोड पर स्वयं को रखना होगा।
सोहागपुर विधानसभा में पिछला चुनाव हारे कांग्रेस के सतपाल पलिया हार के बाद से लगातार जनता के संपर्क में, सुख-दुख में शामिल रहे और अपनी जमीन मजबूत कर ली। वे ही कांग्रेस की ओर से प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं।
हालांकि पूर्व विधायक सविता दीवान शर्मा, जिलाध्यक्ष पुष्पराज पटेल सहित अन्य कई नाम भी हैं। इधर वर्तमान विधायक विजयपाल सिंह के लिए राह आसान नहीं है। उनका भी विरोध हो रहा है। ऐसे में वे लगातार जनता से संपर्क करके अपने पक्ष में माहौल तैयार कर रहे हैं। बिहार से आए प्रवासी विधायक तो यहां तक कह गये हैं कि उनकी जीत पक्की है। ऐसा ही बयान यहां नर्मदापुरम विधायक के पक्ष में बिहार के विधायक दे गये हैं।
पिपरिया विधानसभा में भी वर्तमान विधायक ठाकुरदास नागवंशी के पक्ष में माहौल लगता नहीं है। विरोध के स्वर वहां भी उठ रहे हैं और उनके विरोधी इस बार उनकी टिकट की राह में रोड़े अटकाने का प्रयास करेंगे। यहां कांग्रेस की ओर से रमेश बामने पिछले कई सालों से गाहे-ब-गाहे सक्रिय हो जाते हैं। उनका इस विधानसभा में आना-जाना, वहां के कार्यक्रमों में शामिल होना लगा रहता है। वर्तमान में भी वे पिपरिया विधानसभा में सक्रिय हैं। स्थानीय स्तर पर कुछ नेता उनका समर्थन कर रहे हैं तो कुछ बाहरी का तमगा देकर स्थानीय प्रत्याशी की वकालत कर रहे हैं। देखना है कि कांग्रेस बाहरी-स्थानीय की बात पर जिताऊ प्रत्याशी को टिकट देना पसंद करेगी कि नहीं।
अभी तक सिवनी मालवा विधानसभा में ऐसा विरोध देखने को नहीं मिला जैसा इन तीन विधानसभा क्षेत्र में दिख रहा है। सिवनी मालवा में भी हालांकि वर्तमान विधायक प्रेमशंकर वर्मा से बहुत लोग नाराज हैं। तवानगर, केसला और इटारसी के आसपास के क्षेत्र के लोगों में नाराजी है, लेकिन वे मुखरता से सामने नहीं आ रहे हैं।
विरोध मुखर हो जाए तो उसे कम करना आसान होता है, लेकिन दबा विरोध बहुत नुकसानदेह होता है। देखना होगा कि यह लोगों के मन में दबा विरोध कब ज्वालामुखी बनकर फटता है या फिर मतदान के माध्यम से इसके परिणाम सामने आते हैं। फिलहाल, आने वाले समय का इंतजार करना होगा।
इन सबके बावजूद बीते कई वर्षों से पार्टी का गढ़ बन चुके नर्मदापुरम जिले में कोई भी बदलाव भाजपा को भारी पड़ सकता है। जीते हुए प्रत्याशियों का टिकट काटने के लिए भले ही विरोध हो रहा हो, चुनाव के वक्त ऐसे दृश्य आम होते हैं, लेकिन जीतने वाले प्रत्याशी का टिकट काटना जोखिम भरा हो सकता है, इस जिले ने भले ही पार्टी सिम्बाल को वोट दिया हो, लेकिन प्रत्याशी की अपनी पहचान भी मायने रखती है।
देखना है कि भाजपा इस जिले में बदलाव करके जोखिम उठाना पसंद करती है या फिर इस बार प्रदेश में एक-एक विधायक जरूरी है, की सोच रखकर वर्तमान विधायकों को ही फिर मौका देती है।
रोहित नागे, इटारसी
9424482883