स्मृति में जाग्रत हुई…माँ
आज आम के पेड़ से झरी पहली कैरी
और स्मृति में जाग्रत हुई माँ,
जो बनाती थी कैरी पोदीने की चटनी
और बेसन की मोटी मोटी रोटी,
कड़क कड़क घी से चिपड़ी हुई
सिगड़ी को फूंकनी से फूंक फूंक कर
तेज गर्मी में लाल भभूका हो जाता था चेहरा माँ का
और मैं कल्पना करता था
अग्नि में ज्यादा लालिमा है अथवा
माँ के चेहरे में।
कभी बनती थी लवंजी कैरी की
मीठी मीठी पतली गाढ़ी,
जिसम छौकी जाती थी फांक कैरी की
गुड़ कलोंजी और अन्य मसाले,
उड़ती थी खुशबू चारो तरफ
तली जाती थी शुद्ध घी की पूरी
गोल गोल फूली फूली सुन्दर कुरकुरी,
माँ करके मनुहार खिलाती थी भोजन
एक खैरी पुरी और ले ले बेटा
मैं कल्पना करता था
लवंजी में ज्यादा मिठास थी अथवा
माँ की मनुहार में,
शोध का विषय है यह मेरे लिये
जन्म जन्मांतर तक।।
महेश शर्मा (भोपाल)
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