आलेख अभिषेक तिवारी
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1947 और 1971 भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण तारीखें हैं। 1947 में स्वतंत्रता के साथ ही धर्म के नाम पर देश का विभाजन किया गया। द्विराष्ट्र सिद्धान्त (Two Nation Theory) को आधार बनाकर तत्कालीन मुस्लिम लीग नेतृत्व भारत के अधिसंख्य मुसलमानों के समर्थन से पश्चिम और पूर्व में अपनी बहुलता के इलाकों को मिलाकर एक इस्लामी देश पाकिस्तान की स्थापना करने में सफल रहा।
एक राष्ट्र, एक भूमि के विचार को नकारकर एक धार्मिक पहचान एक उम्मा एक कौम भाई-भाई की बड़ी बड़ी बातें और दावे करते हुये हज़ारों वर्षों से सनातन सभ्यता की पोषक इस भारत भूमि के टुकड़े कर जो पाकिस्तान बना वह केवल 24 सालों में ही खण्डित हो गया।
पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबी बहुल सत्ता और सेना के संस्थानों ने हमेशा अपने हममज़हब अन्य भाषाई समूह जैसे बलोच, सिंधी, मुहाज़िर, पश्तूनों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा है। यही व्यवहार पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला भाषी मुसलमानों के साथ भी किया गया।
अधिक आबादी के कारण अनेक आयामों में उनकी बढ़ती भागीदारी से असहज होने के साथ ही 1969 के आम चुनावों में भारी बहुमत से जीतने के बाद भी उन्हें सत्ता की बागडोर नहीं देते हुये तत्कालीन शासक याह्या खान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में जनता की आवाज़ को दबाने के लिये दमनचक्र चलाया गया। सेना ने पाशविकता की सारी हदें पार करते हुये मौत का नंगा नाच किया।
UNO की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 04 लाख महिलाओं का बलात्कार और अनगिनत जघन्य हत्याएँ की गईं। निष्पक्ष विदेशी पत्रकारों द्वारा किया गया विस्तृत वर्णन रोंगटे खड़े कर देने वाला है। किसी देश की सेना द्वारा अपने ही देशवासियों के साथ ऐसे भीषण अत्याचार की मिसाल और कहीं नहीं है।
शरणार्थियों के बढ़ते दबाववश अप्रत्यक्ष रूप से भारत इस विभीषिका से जुड़ ही गया था लेकिन दिसंबर की शुरुआत में पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तानी वायुसेना के हमले के दुस्साहस के बाद प्रत्यक्ष रूप से भारत की सेना ने सीधा हस्तक्षेप करते हुये पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर तबाही मचा दी।
वायुसेना ने लगभग सभी प्रमुख पाकिस्तानी एयरबेस नष्ट किये वहीं जलसेना ने अतुल्य पराक्रम दिखाकर कराची, चटगांव बंदरगाह बरबाद कर दिये। थलसेना जो पिछले कुछ महीनों से बांग्लादेशी विद्रोहियों के समूह ” मुक्तिबाहिनी ” को हथियार और प्रशिक्षण उपलब्ध करवा रही थी अब सीधे पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश कर चुकी थी।
पाकिस्तान की सारी कोशिशें असफल हो गई यहाँ तक कि उसकी मदद के लिये आगे बढ़कर अपना विश्वप्रसिद्ध सातवाँ बेड़ा भेजने वाले अमरीका को भी पीछे हटना पड़ा था।
16 दिसंबर 1971 को शाम कर ठीक 05 बजे इस युद्ध के प्रमुख रणनीतिकार सेनाप्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ ने प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को फोन करके कहा ” ढाका अब आज़ाद है, पाकिस्तान की सेना से बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया है”।
यह भारत की सेना के शौर्य, पराक्रम, अद्भुत रणनीति के साथ ही राजनीतिक नेतृत्व की मज़बूत इच्छाशक्ति और का ही परिणाम था कि बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ। विपक्ष सहित सम्पूर्ण राष्ट्र पूर्ण समर्थन के साथ खड़ा रहा। इस घटना ने पाकिस्तान की स्थापना के मूल आधार को ही तार तार करते हुए मज़हब के आधार पर देश के द्विराष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) को ध्वस्त कर दिया। इस के अन्य दूरगामी परिणाम भी हुये जिसने उपमहाद्वीप की दिशा और दशा ही बदल दी।
एक लाख से ज़्यादा युद्धबंदी और 5795 वर्ग मील पश्चिमी पाकिस्तान के इलाके पर अपने कब्जे के बाद भी कूटनीतिक रूप से भारत इसका लाभ नहीं ले पाया। शिमला समझौता के अंतर्गत बिना किसी ठोस प्रतिफल के सब कुछ छोड़ना पड़ा। हम मैदान में तो जीते लेकिन वार्ता की टेबल पर हार गये।
एक कट्टरपंथी देश पाकिस्तान ने 1971 से कोई सबक तो लिया नहीं उल्टा अपने सारे संसाधन देश के विकास और जनहित के बजाय विध्वंसकारी गतिविधियों में लगाकर खुद को बरबाद किया। वहीं विविधताओं से भरा भारत आज एक सम्प्रभु, समृद्ध और सुरक्षित देश के साथ ही विश्व की आर्थिक और सामरिक महाशक्ति है।
16 दिसंबर भारत के हर नागरिक के लिये गर्व का दिन है। बांग्लादेश के लाखों मासूम नागरिकों के रक्षा के लिये अपना जीवन देने वाले 4000 से अधिक सैनिकों अधिकारियों ने सर्वोच्च बलिदान करते हुए देश को अतुल्य यश दिलाया। उन सभी हुतात्माओं को नमन है।
16 दिसंबर 2022