अहिल्या उद्धार नगर दर्शन, पुष्प वाटिका का मंचन देख भावविभोर हुए दर्शक

Post by: Rohit Nage

  • नगर पालिका परिषद के तत्वावधान में श्रीराम लीला उत्सव का आयोजन

इटारसी। नगर पालिका परिषद के तत्वाधान में चल रहे श्री रामलीला दशहरा महोत्सव के अंतर्गत आज गांधी मैदान पर सुबाहु-मारीच वध, अहिल्या उद्धार, श्रीराम का नगर दर्शन और पुष्प वाटिका का मंचन किया जो लोगों को बहुत भाया। गांधी मैदान पर श्री वृंदावन धाम से श्री बालकृष्ण लीला संस्थान के कलाकार स्वामी श्यामसुंदर शर्मा छोटे महाराज के नेतृत्व में बेहतरीन अदायगी के साथ मंचन कर रहे हैं। नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पंकज चौरे अपने पार्षद साथियों के साथ प्रतिदिन श्रीरामलीला का मंचन दर्शन को पहुंच रहे हैं। गांधी मैदान पर रामलीला दर्शन करने बड़ी संख्या में दर्शक भी पहुंचने लगे हैं। शाम को आरती के बाद मंचन प्रारंभ होता है।

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आज के मंचन में बताया कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञ में राक्षस बाधा उत्पन्न करते थे। उस समय ऋषि विश्वामित्र बड़ा यज्ञ कर रहे थे तथा राक्षस उनके यज्ञ की अग्नि में मांस, रक्त आदि डालकर उसे अपवित्र कर देते थे। इसलिए महर्षि विश्वामित्र ने अयोध्या में राजा दशरथ से सहायता मांगी तथा यज्ञ की रक्षा के लिए उनके पुत्र प्रभु श्रीराम को साथ भेजने के लिए कहा। महाराज दशरथ की आज्ञा से प्रभु श्रीराम बंधु लक्ष्मण के साथ ऋषि विश्वामित्रजी के गुरुकुल पहुंचे। उन दोनों को महर्षि विश्वामित्र ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए।

महर्षि विश्वामित्र ने यज्ञ प्रारंभ किया और राम ने लक्ष्मण को सतर्क किया। उसी समय अचानक आकाश से मेघों के गरजने की आवाज आने लगी। मारीच और सुबाहु की राक्षसी सेना यज्ञ के स्थान पर रक्त, मांस, मज्जा, अस्थियों आदि की वर्षा करने लगी। यज्ञ में बाधा आ रही है यह देखकर श्रीराम ने उपद्रवकारियों की ओर देखा। तब आकाश में मायावी राक्षसों की सेना को देख कर राम ने लक्ष्मण से कहा, ‘लक्ष्मण, तुम धनुष पर शर-संधान करके सावधान हो जाओ। मैं मानव अस्त्र चलाकर इन महापापियों की सेना का अभी नाश कर देता हूं।

यह कह कर राम ने अत्यंत फुर्ती और कुशलता का प्रदर्शन करते हुए उन पर मानवास्त्र छोड़ा। श्रीराम ने छोड़ा हुआ वह मानवास्त्र आंधी की गती से जाकर मारीच की छाती में लगा। अस्त्र के वेग के कारण मारीच उडक़र चार सौ कोस दूर समुद्र के पार लंका में जा गिरा। इसके पश्चात् राम ने आकाश में आग्नेयास्त्र फेंका जिससे अग्नि की एक भयंकर ज्वाला निकली और उसने सुबाहु को चारों ओर से घेर लिया ्र। इस अग्नि की ज्वाला ने क्षण भर में उस महापापी सुबाहु को जला कर भस्म कर दिया। अस्त्रों के प्रहार से राक्षसों की विशाल सेना के वीरों की मृत्यु होकर वे ओलों की भांति भूमि पर गिरने लगे। इस प्रकार थोडे ही समय में सम्पूर्ण राक्षसी सेना का नाश हो गया। चारों ओर राम की जय जयकार होने लगी तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी।

अहिल्या उद्धार

प्रात:काल जब राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले तो उन्होंने एक उपवन में एक निर्जन स्थान देखा। राम बोले, भगवन! यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहां कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते? विश्वामित्र जी ने बताया, यह स्थान कभी महात्मा गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी अहिल्या के साथ यहां रह कर तपस्या करते थे। एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गये हुये थे तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की। यद्यपि अहिल्या ने इन्द्र को पहचान लिया था तो भी यह विचार करके कि मैं इतनी सुन्दर हूँ कि देवराज इन्द्र स्वयं मुझ से प्रणय याचना कर रहे हैं, अपनी स्वीकृति दे दी। जब इन्द्र अपने लोक लौट रहे थे तभी आश्रम को वापस आते हुये गौतम ऋषि की दृष्टि इन्द्र पर पड़ी। वे सब कुछ समझ गये और उन्होंने इन्द्र को शाप दे दिया। उन्होंने अपनी पत्नी को शाप दिया कि तू हजारों वर्ष तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहां राख में पड़ी रहे। जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा। इसलिये हे राम! अब तुम आश्रम के अन्दर जाकर अहिल्या का उद्धार करो। अहिल्या की दृष्टि राम पर पड़ी तो उनके पवित्र दर्शन पाकर एक बार फिर सुन्दर नारी के रूप में दिखाई देने लगी।

नगर दर्शन और पुष्प वाटिका

जनकपुर पहुंचते ही विश्वामित्र जी राम और लक्ष्मण का महाराज जनक जी से परिचय कराते हैं। दोनों राजकुमारों की छबि देखकर महाराज जनक अति प्रसन्न होते हैं। फिर राम-लक्ष्मण अपने गुरु से आज्ञा लेकर नगर दर्शन के लिए जाते हैं एवं नगरवासियों से मिलकर अतिप्रसन्न होते हैं । भगवान सुबह उठते हैं, और स्नान कर गुरु जी की वंदना करते हैं। गुरुजी ने उन्हें फूल लेने के लिए पुष्प वाटिका भेज देते हैं । पुष्प वाटिका में भगवान सूंदर-सूंदर फूल तोड़ते हैं। उसी समय जनकनंदिनी सीता जी गोरी पूजा लिए के उसी बाग में पहुंचती है, तभी उनकी एक सखी भगवान को देखती है और सीता जी के पास जाकर बताती है कि दो राजकुमार एक श्याम और एक गोरे है, वो दोनों इतने सुंदर है कि मैं उनका वर्णन नही कर सकती। सखी की बात सुनकर अब सीता जी भगवान के दर्शन करने के लिए जाती है और श्री राम को देखते ही सुध-बुध खोकर खड़ी की खड़ी रह जाती हैं। इस मनोहारी दृश्य को देखकर, रामलीला पंडाल दर्शकों की तालियों से गूंज उठता है।

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