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मिट्टी-गोबर और घास के दरवाजों से तैयार हुआ ‘तपोवन’

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वैदिक साइंस (Vedic Science) का अध्यन कर रहे डॉक्टर (Doctor) ने बनाया अपना प्राकृतिक मकान, गर्मी में नहीं पड़ती एसी (AC), कूलर (Cooler) की जरुरत, बिगड़ते पर्यावरण की चिंता के साथ ही लोगों को कर रहे जागरूक।

मदन शर्मा, नर्मदापुरम। डबल फाटक (Double Gate) के पास स्थित नर्मदा अपना अस्पताल (Narmada Apna Hospital) में वैदिक पद्धति से मकान का निर्माण किया गया है। जिसे तपोवन (Tapovan) नाम दिया है। सर्दी, गर्मी, बारिश से बचने लिए यह आधुनिक है या यूं कहें इलेक्ट्रीकल संसाधनों (Electrical Resources) से मुक्त है। इसे प्रदेश के नामचीन हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश शर्मा ( Orthopedist Dr. Rajesh Sharma) ने बनवाया है।

यह मकान मिट्टी-गोबर और घास से पूरी तरह प्राकृतिक है। मकान ठंड-गर्मी और बैक्टीरिया मुक्त (Bacteria Free) है। तेज तपन में भी इस मकान में बाहर के मुकाबले अंदर 5 से 7 डिग्री टेम्प्रेचर कम रहता है। अब इस प्राकृतिक ‘तपोवन’ को देखने प्रदेश भर से लोग आ रहे हैं। प्राकृतिक घर को मैनिट के प्रोफेसर डॉ. आशुतोष शर्मा (Prof. Dr. Ashutosh Sharma) ने डिजाइन किया है। जिसे बनाने में करीब छह महीने लगे थे।

इसलिए बैक्टीरिया मुक्त है ‘तपोवन’

आधुनिक विज्ञान के जीवाणु सिद्धांत के अनुसार बैक्टीरिया को पनपने का मौका तब मिलता है, जब उनके अनुकूल वातावरण हो। शीत ऋतु में शीत के वायरस व ग्रीष्म में गर्म वातावरण के वायरस जन्म लेते हैं। वैदिक प्लास्टर युक्त भवन एडोबटेक्निक (काब और एडोब सिद्धांत) (Adobetechnic (Kab and Adobe Theory)) पर आधारित होने के कारण गर्मी में ठंडे व ठंड में गर्म होते हैं। जिससे प्रतिकूल वातावरण में वायरस नहीं पनपते, जबकि सामान्य ईंट वाले घर में बैक्टीरिया के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है, जिससे वह कई गुना पनपते हैं। इससे पहले ग्वालियर (Gwalior) जिले में गोबर के ईंट का उपयोग कर मकान बनाए जा चुके हैं।

ऐसे तैयार की गई दीवारें

प्राकृतिक घर तैयार करने के लिए ईंट का बुरादा, गोबर, मिट्टी और घास के मिश्रण को बोरियों में भरकर दीवार बनाई गई। वैदिक प्लास्टर बनाने के लिए गोबर, जिप्सम, मिट्टी, भूसा का यौगिक तैयार किया, जो क्रिया करके सशक्त प्राकृतिक पाउडर बनाता है। इसे पानी के साथ मिलाकर प्लास्टर किया गया। दीवारें ब्रीदिंग वाल्स(Breathing Walls) का काम करती हैं। ऐसे स्ट्रक्चर्स (Structures) में ऑक्सीजन (Oxygen) की मात्रा भरपूर होती है।

उत्तर-पूर्व दिशा में मुख

डॉ राजेश शर्मा ने बताया कि मकान में एक ड्राइंग रूम (Drawing Room), एक लिविंग रूम (Living Room), एक स्टडी रूम (Study Room), बैठक कक्ष, समीक्षा कक्ष है। मेरा यह घर उत्तर-पूर्व दिशा में है जो वास्तु के हिसाब से बना है। सामने बने नर्मदा मंदिर (Narmada Mandir) में स्थित स्फटिक शिवलिंग मेरे ध्यान कक्ष के बिलकुल सामने है। जिससे नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और आध्यामिक ऊर्जा प्राप्त होती है।

कम खर्च में बना आलीशान प्राकृतिक घर

रसूलिया रेलवे ब्रिज ( Rasulia Railway Bridge) के पास नर्मदा अपना अस्पताल परिसर में 14 हजार वर्गफीट में बनाए गए इस प्राकृतिक घर को बनाने में करीब 50 लाख रुपए खर्च हुए हैं। जबकि इतने क्षेत्र में कांक्रीट का मकान बनाने में 1 करोड़ 68 लाख रुपए खर्च होते। प्राकृतिक आवास को बनाने में तुअर की खाड़ी, नीलगिरी की बल्लियों का उपयोग किया गया है।

ऋषियों की कुटिया होती थीं ऐसी

प्रदेश के जाने माने हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश शर्मा ने बताया कि तपोवन को बनाने में आधुनिक मटेरियल का कुछ भी इस्तेमाल नहीं किया। करीब 400-500 साल पहले ऋषि मुनियों की कुटिया जैसी बनती थी उसी पद्धती से तपोवन तैयार किया है। इसमें लोहा, सीमेंट, रेत का इस्तेमाल नहीं किया है। नींव भी नहीं खोदी गई है इसे जमीन पर ही तैयार किया है। इसमें पूर्ण रूप से गाय का गोबर, मिट्टी भूसा और चूना डालकर तैयार किया है। जिसकी दीवारें ढाई से तीन फुट, छत को तुअर की खाड़ी का उपयोग किया गया है। इसके अलावा हवा आने के लिए पर्याप्त खिड़किया हैं। इसमें बाहर की अपेक्षा 5 से 6 डिग्री सेल्सियस तापमान कम रहता है।

Rohit Nage

Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.

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