जो स्वयं का ज्ञान करा दे, वही वास्तविक शिक्षा है : डॉ. नीलाभ

Post by: Rohit Nage

इटारसी। विद्या का आदान-प्रदान करने वाली प्रक्रिया शिक्षा है। भारतीय शिक्षा दर्शन का लक्ष्य ब्रह्म की प्राप्ति है। मनोविज्ञान आत्मा का विज्ञान है, क्योंकि इसमें आत्मतत्व और मनुष्य की प्रकृति का अध्ययन किया जाता है।

उक्त विचार केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के विभागाध्यक्ष एवं सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मप्र के सहसचिव डॉ.नीलाभ तिवारी ने यहां सरस्वती विद्या मंदिर में चल रहे नवीन आचार्य विकास वर्ग में व्यक्त किए। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. नीलाभ ने अपने उद्बोधन में भारतीय शिक्षा दर्शन एवं मनोविज्ञान की संकल्पना विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय शिक्षा दर्शन मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के विकास पर बल देता है। आपने अंत:करण चतुष्ट्य पर भी विस्तृत जानकारी दी।

उल्लेखनीय है कि विद्या भारती मध्यभारत प्रांत की योजना से आयोजित प्रशिक्षण वर्ग में प्रतिदिन के संवाद सत्र में विद्वान वक्ताओं द्वारा विभिन्न विषयों पर नवचयनित आचार्यों का प्रबोधन किया जाता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्या भारती के पूर्व छात्र और वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा ने की। समिति के कोषाध्यक्ष विक्रम सोनी, समिति उपाध्यक्ष एवं पूर्व छात्र परिषद विभाग संयोजक अभिषेक तिवारी, विभाग समन्वयक रामकुमार व्यास, वर्ग संयोजक अशोक कुमार दुबे सहित संचालन टोली व अन्य आचार्य उपस्थित रहे।

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