शनिवार, सितम्बर 7, 2024

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संत के आते ही जो जाग जाए वह भक्त है : विदेह महाराज

इटारसी। अधिक मास में श्री द्वारिकाधीश मंदिर (Shri Dwarkadhish Temple) में चल रही श्री राम कथा (Shri Ram Katha) के छटवे दिन मुंबई (Mumbai) से आये प्रसिद्ध राम कथाकार स्वामी विदेह महाराज (Swami Videha Maharaj) ने हनुमान विभीषण मिलन (Hanuman Vibhishan Milan) की कथा को विस्तार से चित्रण करते हुए कहा कि लंका पहुंचकर हनुमान जी को यह लगा कि यहां तो केवल निशाचर ही हैं, यहां कोई सज्जन व्यक्ति कैसे हो सकता है? विभीषण के निवास के बाहर जाकर हनुमान जी के अंदर मन ही मन यह तर्क-वितर्क चल ही रहा था कि विभीषण जाग गए और राम नाम का स्मरण करने लगे।

कथा को विस्तार देते हुए स्वामी विदेह महाराज ने कहा कि श्रीरामचरित मानस के रहस्यों को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है हनुमान जी से विभीषण का संवाद। संत के आते ही जो जाग जाए, वह भक्त है। संत के आने पर भी जो सोता रहे, वही रावण (Ravana) है। जो राम (Ram) नाम हनुमानजी के मुख में मुद्रिका के रूप में था, विभीषण जी ने उसी नाम को जीवन में साकार कर दिखाया। तब हनुमान जी ने उन्हें साधु मानकर परिचय करने की ठान ली। हनुमान जी ज्यों ही विभीषण के निकट गए, उसी क्षण विभीषण ने हनुमान जी से दो बातें पूछीं! पहली यह कि क्या आप भगवान के कोई निकटतम दास हैं? क्योंकि मेरे हृदय में आपको देखते ही भगवान के प्रति बहुत प्रेम उमड़ रहा है।

अद्भुत प्रीति का उदय जैसा कभी नहीं हुआ। लगता है आप मुझे बड़भागी बनाने आए हैं। अब तक ऐसा अनुराग मेरे जीवन में कभी नहीं आया, आपके पधारते ही मैं अनुरागी और बड़भागी हो गया ।

सोइ गुनग्य सोइ बड़भागी। जो रघुबीर चरन अनुरागी।

संत की यही परिभाषा है कि जिसे देखकर हमारी चित्तवृत्ति भगवद्भक्ति में डूब जाए। हम तभी बड़भागी होते हैं। रावण तो अपने पिता के नाम को धन्यता नहीं दे पाया, पर विभीषण ने विश्रवा मुनि की आत्मा को ठंडक पहुंचा दी। जीवन तो उसी का धन्य है, जिसे अपने पुत्र के सुयश को सुनकर आनंद की अनुभूति हो। सुयश सत्कर्म का ही परिणाम होता है। संसार का कौन-सा ऐसा पिता है, जो अपने पुत्र के यश से आनंद और जीवन में धन्यता का अनुभव न करना चाहता हो। आयोजक मंडल के दीपक जीडी अग्रवाल (Deepak GD Aggarwal) सहित सभी सदस्यों ने व्यासपीठ का पूजन कर स्वागत किया। कथा के समापन अवसर पर प्रसाद वितरण किया गया।

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