रोहित नागे, इटारसी
सोशल मीडिया नहीं था, तो राजनीतिक चर्चाएं चौक-चौराहों पर, होटलों पर चाय की चुस्कियों के साथ होती थीं। सोशल मीडिया के युग में ज्यादातर समूह चर्चा राजनीति की ही हो रही हैं। इनमें भी बीच-बीच में अफवाहों को हवा दे दी जाती है। मसलन, चुनाव की डेट तक जारी कर दी जाती है, आचार संहिता भी लग जाती है, फिर ऐसी बिना जानी-परखी बातों पर प्रशासन को परेशानी होती है और ऐसी बातों का खंडन किया जाता है। सोशल मीडिया सूचनाओं को जानने का सशक्त माध्यम तो है, लेकिन इसमें विश्वसनीय और अविश्वसनीय का घालमेल भी है। इन दिनों सबसे अधिक कोई चर्चा हो रही है तो वह है, किसे किस पार्टी से टिकट मिलेगी।
कुछ समूह तो बाकायदा इसके लिए सवाल पूछ रहे हैं कि संभावित प्रत्याशियों के नाम बताएं, और लोग अपने-अपने पसंद के उम्मीदवारों के नाम भी दे रहे हैं तो कुछ केवल चर्चाओं में शामिल रहने के लिए कुछ भी नाम दे रहे हैं। इनमें एक नाम सबसे अधिक लिया जा रहा है, वर्तमान विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा का। भारतीय जनता पार्टी से दूसरा नाम यदि कोई सामने आया है तो डॉ.राजेश शर्मा का। कांग्रेस में भी संजय गोठी का नाम सबसे अधिक लिया जा रहा है तथा दूसरा नाम चंद्रगोपाल मलैया का लिया जा रहा है। अब फिलहाल तो कांग्रेस ने कोई सूची भी जारी नहीं की है, अलबत्ता भाजपा तीन सूची जारी कर चुकी है, फिर अचानक चुप्पी पर माना जा रहा है कि संभवत: पितृपक्ष समाप्ति के बाद चौथी सूची आये। कांग्रेस ने फिलहाल तस्वीर स्पष्ट नहीं की है। पिछले दिनों की राजनीतिक गहमागहमी से कयास भर लगाये जा रहे हैं कि कांग्रेस में बाहर से कोई नाम आयेगा। यह नाम सुरेश पचौरी का हो सकता है।
हालांकि राजनीति को करीब से जानने वाले कहते हैं कि भाजपा से डॉ.सीतासरन शर्मा के सामने सुरेश पचौरी नहीं आएंगे। ऐसे ही हाल ही में उनके भाई पूर्व विधायक गिरिजाशंकर शर्मा भी उनके सामने नहीं आएंगे। फिर तो जिले के सबसे बड़ी जातिगत गणना वाले चंद्रगोपाल मलैया, संजय गोठी, हेमंत शुक्ला, महेन्द्र शर्मा जैसे नाम ही रह जाते हैं, जो टिकट की लाइन में हैं। टिकट किसके खाते में आएगी यह तो आने वाला वक्त बतायेगा। भाजपा में तो ज्यादातर संख्या डॉ.सीतासरन शर्मा को चाहने वालों की है।
उनके विरोधियों की संख्या भी है, लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी इस बार तो कोई जोखिम उठाने के मूड में नहीं है, क्योंकि जीते हुए प्रत्याशी को बदलना और जिसका जनता में कोई विरोध न हो, बड़ा जोखिम होगा। पार्टी में विरोध अलग बात है, क्योंकि इसमें विरोध करने वालों का अपना स्वार्थ है कि उनको चांस मिलना चाहिए, लेकिन जन विरोध हो तो प्रत्याशी बदलने की बात पार्टी आलाकमान सोच सकता है।
बहरहाल, टिकट किसे मिले, कौन प्रत्याशी किस पर भारी रहेगा, यह सोचना राजनैतिक दलों का काम है। जनता को इससे ज्यादा सरोकार नहीं होता है। जब नाम तय हो जाएंगे तो वोटर को तय करना है कि उसे कौन अच्छा प्रत्याशी लगता है, वह किसे अपने क्षेत्र के विकास की बागडोर सौंपती है, फिलहाल जनता खामोश है, लेकिन सोशल मीडिया पर चर्चा जारी है, जो समय-समय पर विषय बदलने के साथ बदलती जाएगी।
फिलहाल टिकट की घोषणा का सभी को इंतजार है।

रोहित नागे, इटारसी
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